बक्शीपुर गांव के रामदीन ब्राह्मण एक संपन्न गृहस्त थे जो मालगुजारी वसूलने में हाकिम की मदद किया करते थे एक बार हाकिम ने उनसे इस बात की जमानत मांगी कि जो वसूली तुम करोगे उसे ईमानदारी से खजाने में जमा करोगे इस पर रामदीन ने कहा कि मैं खुद एक इज्जतदार और ईमानदार आदमी हूं इसलिए मेरी जमानत की जरूरत नहीं है और मुझे किसी इंसान का जमानतदार होना स्वीकार नहीं है तब हाकिम ने कहा कि तुम समर्थ साई जगजीवन दास जी के अभरन कुंड पर जाकर अभरन के जल को हाथ में लेकर कहो कि मैं अभरन कुंड को अपनी जमानत देता हूं और सरकारी रुपयों का नुकसान नहीं करूंगा तब रामदीन ने इसे स्वीकार कर अभरन कुंड की जमानत दे दी परंतु वसूली का पैसा सरकारी खजाने में नहीं जमा कराया जब हाकिम ने पैसा जमा कराने के लिए कहलाया तो रामदीन ने उत्तर भेजा कि अभरन कुंड से ले लो जिसने जमानत दी है क्रुद्ध होकर हाकिम ने सिपाहियों के साथ रामदीन को घेरने का प्रयास किया तो रामदीन ने अपना सभी माल आदि नाव पर लादकर घाघरा के उस पार जाने का प्रबंध किया जिस नाव पर रामदीन और उनके घरवाले सवार थे जब वह बीच धारा में पहुंची तो बड़े जोर से आंधी चलने लगी और भंवर में फंस कर वह नाव डूब गई जिससे रामदीन और उसके परिवार वाले सभी पानी में डूब गए और किसी का पता ना चला तब रामदीन के उत्तराधिकारियों ने हाकिम को सरकारी रूपया अदा किया और उनके कानूनी उत्तराधिकारी बने
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Sunday, April 7, 2019
कीर्ति गाथा 106
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