卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Sunday, April 7, 2019

कीर्ति गाथा 107


जब रंग चढयो जगजीवन का
 
          सालिकदास का जन्म ग्राम व पोस्ट जगदीशपुर बलिया में सन 1909 में हुआ पिता का नाम श्री शिवलोचन चौरसिया तथा माता का नाम जानकी देवी था सालिक दास जी कुल 5 भाई व एक बहन थे दैव योग से 14 वर्ष में माता पिता का देहांत हो गया और पूरे परिवार की जिम्मेदारी कंधों पर आ गई 16 वर्ष में आप परिणय सूत्र में बंधे एवं पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करते करते 16 वर्ष बीत गए पर एक भी संतान ना हुई सालिक दास के छोटे भाई रामा शंकर जी नागा पंथ से मंत्र दीक्षा लेकर घर परिवार छोड़ चुके थे सालिकदास ने अनेकों उपाय किए किंतु संतान ना  हुई एक दिन एक मित्र के परामर्श पर सालिक दास जी कोटवा धाम गए  दर्शन व बंदगी कर तत्कालीन महंत गइया साहब से संतान प्राप्ति हेतु प्रार्थना की |(कहते हैं गइया साहब सदैव ही समर्थ जगजीवन साहेब के चरणों के ध्यान में लीन रहा करती थी आपका नाम भक्तों के बीच बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है) गइया साहब के आशीर्वाद से आप के कुल 5 संताने(1) श्री जगजीतन(2) श्री राम जीवन(3) श्री प्रेम जीवन और श्यामा देवी व रामा देवी नाम की दो पुत्रियां हुई सन 1965 में गइया साहब ने सालिकदास को दीक्षित कर महंत बनाया और 1971 में सालिदास को गृहस्थ आश्रम में रहते हुए बैरागी जीवन जीने का आदेश दिया और निर्विकार भाव से भक्ति में लीन होने का मार्ग सुझाया आदेशवत कुछ दिनों तक सालिकदास ने घर में रहते हुए दान, धर्म ,सतकर्म आदि सब में स्वयं को समर्पित किया  पर कुछ दिनों बाद पुनः गइया साहब के चरणो में जाकर अनुरोध किया कि हे माता संत सेवा करने की प्रबल इच्छा है इस पर गइया साहब ने कहा समर्थ साहेब  जगजीवन की कृपा से एक  वर्ष के भीतर ही संत का सानिध्य तुम्हें मिलेगा तब अपना मनोरथ सिद्ध कर लेना पूरा वर्ष बीतने वाला था पर कोई मन का बैरागी संत ना मिला अब कुछ ही दिन बाकी थे उन्हीं दिनों साहब फकीरे दास का आपके घर पर आगमन हुआ जिनकी वाणी , उपदेश और नाम उपासना का आप पर विचित्र का अद्भुत प्रभाव पड़ा और गइया साहब का आशीर्वाद फलित समझकर आपने साहब फकीरे दास की सेवा में रहने का निश्चय कर लिया
भाग 2 
          सालिक दास के तृतीय पुत्र प्रेम दास का जन्म 12 मई 1966 को हुआ 5वें वर्ष मुंडन के समय बच्चा साहब ने  प्रेमदास को गुरु मुख किया उम्र के 16 वर्ष में हाईस्कूल पास होते होते आभास हो चला था कि मन बैरागी है अतः अविवाहित रहने का निश्चय कर ध्यान सुमिरन में लीन रहते हुए तथा आश्रम की देखभाल करते हुए साधु संतों की सेवा में खुद को समर्पित किया प्रेमदास जी वेशभूषा को प्राथमिकता ना देते थे तथा प्रेमदास जी का मानना था कि व्यक्ति को हृदय से संत होना चाहिए वेशभूषा तो आवरण मात्र है पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए संत सेवा भाव लेकर आपने फैजाबाद में श्री लाल साहब की सेवा में स्वयं को समर्पित किया तथा 8 वर्ष तक उनकी सेवा में रहे फिर लाल साहब के कहने पर कि जो जैसा है उसे वैसा देखने में बुराई ही क्या है बस व्यर्थ के आडंबर और प्रपंच से दूर रहना चाहिए संत की वेशभूषा तो सनातनी गौरव है अतः धारण करो फिर आपने संत वेश धारण कर लिया पिता के समय  से  ही आरम्भ  30 वर्षों से अनवरत सिद्धौर आश्रम में भंडारा होता है जिसमें दूर दूर से सतनामी  संतों का आगमन होता है प्रेमदास जी सिद्ध संत हैं जिनसे हजारों श्रद्धालु मिलने आते हैं और लाभान्वित होते हैं स्वभाव से सरल व मृदुभाषी तथा असहायों  की सेवा में सदैव तत्पर रहते हुए स्वयं के झूठे नाम यश आदि की कामना से सदैव दूर रहते हुए तथा अविवाहित व बैरागी जीवन जीते हुए सामाजिक सेवा व  नाम उपासना में लगे हैं कहते हैं ना "जब रंग चढयो जग जीवन का श्री दूलन का फिर और रंग से काम है क्या जो सागर लेके बैठे हैं उनको गागर से काम है क्या" सालिक दास जी एक घटना का वर्णन करते हुए अत्यंत ही भावुक हो उठते हैं वह बताते हैं कि सन 1970 में एक बार वह कोटवा धाम गए थे अगले दिन प्रातः सुबह 7:00 बजे के आसपास दर्शनों के लिए समाधि मंदिर पर पहुंचे और भी बहुत से श्रद्धालु आए हुए थे परंतु पुजारियों के विलंब होने की वजह से मंदिर का पट अभी तक नहीं खुला था पुजारियों को आने में शायद विलंब हो चुका था भक्त लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे जब पुजारी जी आए ताला खोला कुंडी  हटाकर दरवाजा सरकाने  ने लगे किंतु दरवाजा अपनी जगह से हिल भी नहीं रहा था कुछ युवा भक्त सहायतार्थ आगे आए उन्होंने भी जोर आजमाइश की किंतु दरवाजा नहीं खुला इस बात की सूचना तत्कालीन महंत बच्चा साहब को दी गई तब तक हजारों भक्त इकट्ठा हो चुके थे बच्चा साहब आए दरवाजे पर खड़े होकर उन्होंने बहुत अनुनय विनय की प्रार्थना कर रोते हुए समाधि मंदिर की चौखट पर लेट गए  कुछ समय के उपरांत समाधि मंदिर का दरवाजा स्वयं ही तेज आवाज के साथ खुल गया और भक्तों ने जयकारा लगाया धन्य है जगजीवन की महिमा जो सदैव अपने भक्तों का उनके प्रेम का मान का ध्यान रखते हैं 
   

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