प्रिय भक्तों जैसा कि अनंत कोटि ब्रम्हांड नायक सच्चिदानन्द स्वरूप श्री सर्व समर्थ साईं जगजीवन दास जू महाराज जी की कीर्ति गाथाओं के महान ग्रंथ कीरत सागर के बारे में वर्णित है कि यह ग्रंथ समर्थ साईं जगजीवन दास जू महराज के सतलोक गमन के लगभग 45 वर्ष के उपरांत संवत 1892विक्रमी (सन 1805 ईसवी) में पहली बार मुंशी शंकर दयाल साहब हरिजन रईस निवासी लखनऊ के द्वारा दोहा और चौपाई नामक छंद में लिखा गया जो वर्तमान में अप्राप्य है इसके उपरांत समर्थ साईं के भक्त लाला भोलानाथ कानूनगो निवासी मलिहाबाद लखनऊ ने जो बाद में फतेहपुर जनपद बाराबंकी रहकर भक्ति भाव से उसी कीरत सागर ग्रंथ का फारसी मिश्रित उर्दू भाषा में गद्य रूप में रूपांतरित किया इसके बाद संवत 1941 विक्रमी सावन महीना तदनुसार जुलाई 1884 ईसवी में श्री लालजी पुत्र नव निधि राय इब्ने पन्नूलाल पुत्र रामप्रसाद कानूनगो मूलनिवासी काकोरी लखनऊ ने नवाबगंज बाराबंकी में रहकर इसको क्रमबद्ध किया तथा पंडित गुरु नारायण और ओमान पत तिवारी ने इस कार्य में सहयोग किया इसी ग्रंथ को महंत कौशलेंद्र बक्स दास (संझले साहब) ने महंत बाबा दीनदास कमौली धाम से प्राप्त कर 12 अक्टूबर 1987 ईस्वी तक स्वयं लिखकर हस्तलिखित प्रति अपने पास सुरक्षित की और विभिन्न स्रोतों से प्राप्त इसी ग्रंथ का प्रकाशन जनवरी 1990 ईस्वी में भक्त शिरोमणि पत्रिका में रतापुर चौराहा रायबरेली से हुआ था किंतु उक्त पत्रिका में अनेकों स्थानों पर मुद्रण एवं शाब्दिक एवं अक्षरात्मक त्रुटियां विद्यमान थी अत: उन सभी त्रुटियों का निवारण करते हुए उपरोक्त ग्रंथों की सहायता से प्रचलित हिंदी भाषा में रूपांतरित कर मूल ग्रंथ की भावना को अक्षुण्ण रखते हुए सतनामी भक्तों एवं श्रद्धालुओं के हितार्थ पुनः 2003 व 2015 ईस्वी में प्रकाशन हुआ इस ग्रंथ में सर्व समर्थ स्वामी जगजीवनदास जू महराज व उनके परम प्रिय सिद्ध शिष्यों एवं सतनामी महात्माओं एवं संतों की 150 ज्ञात कीर्ति गाथा ओं का संकलन है विलंबित और शिथिल प्रयासों के कारण असंख्य कीर्तियां छूट भी गई जिन्हें ना संजो पाना शायद हमारा दुर्भाग्य रहा आज भी ऐसी हजारों कीर्तिया जनमानस में प्रचलित हैं चाहे वह पियारे दास हों साहेब नेवल दास हो या समर्थ साहेब ख्यामदास 4 पावा 14 गद्दी के सभी संत महंत परम सिद्ध थे और सभी संतों की अपनी-अपनी कीर्ति गाथायें हैं सभी को यहां लिख पाना सरल तो नहीं पर कुछ कीर्ति गाथाओं को संकलित करने की कोशिश अवश्य रहेगी ताकि सभी सतनामी भक्तों को उसका लाभ मिल सके और वह ईश्वर नाम की महिमा का वास्तविक अर्थ समझ सके चूँकि सभी सतनामी धामों में रागिक सौंदर्य बोध आदि की सामग्री नहीं होती और सभी समाधि मंदिर ही हैं तथा यहां के सभी महंत सीधे-साधे और सरल हृदय के होते हैं तथा किसी भी धामों में किसी प्रकार की मांग (डिमांड )धन आदि से संबंधित नहीं होती परंतु लाखों भक्तों की भीड़ देखकर जिस ईश्वरीय सौंदर्य का बोध होता है वह अतुल्य है समर्थ साहेब जगजीवन दास या उनके परम सिद्ध संतो के प्रति आस्थावान होने की भक्तों की अपनी अपनी मान्यतायें है यहां उन गाथाओं का संकलन तो नहीं परंतु कीरत सागर नामक ग्रंथ में वर्णित कुछ प्रमुख कीर्ति कथाओं का संकलन अवश्य है और आशा ही नहीं विश्वास भी है कि समर्थ साईं जगजीवन दास के भक्तों को इस ब्लॉग को देख कर अवश्य प्रसन्नता होगी
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Saturday, April 6, 2019
कीर्ति गाथा 1
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