जब समर्थ साईं जगजीवन दास जी का आठवां वर्ष चल रहा था, उस समय मुगल शासक ने सिपाहियों की फौज लेकर गांव पर चढ़ाई कर दी, और गायों को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाना शुरु कर दिया, गांव वाले ठाकुर गंगा राम साहब के पास आए और कहा कि हम सब क्षत्रिय हैं और गायों को अपनी शक्ति भर नहीं ले जाने देंगे, हम लोग लड़ कर जान दे देंगे या फिर गायों को बचा लेंगे और सभी क्षत्रिय साथ होकर चल पड़े। तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा हम भी चलेंगे, तब उन लोगों ने मना किया कि तुम अभी बच्चे हो वहां तो तीर तलवार व बंदूक का सामना करना है ,तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा क्षत्रिय इन सब चीजों से नहीं डरते, यह तो उनका खेल है और मैदान में पहुंच गए मुगल फौजों ने बंदूक दागना शुरु किया और क्षत्रियों की तरफ से लोग तीर और बंदूक चलाने लगे मुगल फौज के सामने अंततः क्षत्रियों का पांव उखडने लगा , तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने अकेले मैदान में खड़े रहकर एक सींक का बाण़ बनाया और बांण पर अग्नि ज्वाला बिठाकर मंत्र के बल से छोड़ दिया ,मुग़ल फौज जलने लगी और भगदड़ मच गई, मुगल सेना नायक ने कहा कि क्षत्रियों की सब सेना तो भाग गई ,और अब यह क्या कारण है कि मेरी फौज भागने लगी, और सब जले जाते हैं, चल कर देखना चाहिए। सेना नायक हाथी पर सवार होकर मैदान में आया और देखा कि यहां पूरा मैदानखाली पड़ा है, खाली मैदान में एक लड़का हाथ में धनुष बाण लिए खड़ा है और जैसे लड़के खेल खेल में तीर चलाते हैं उसी प्रकार बाण चला रहा है ,परन्तु उसका बदन तपे हुए सोने की तरह सुर्ख चमक रहा है ,जिसके सामने आंख नहीं ठहरती है ।किसी ने कहा यह कोई देवता है जो हमारी फौज की मौत बनकर प्रकट हुए हैं ,या कोई सिद्ध महात्मा हैं ,उनके पास जाकर देखना चाहिए ।तब सभी हथियार फेंक कर समर्थ साईं जगजीवन दास जी के पास आए और हाथ जोड़कर बोले कि महाराज आप कौन हैं ?हम लोग आप का सामना नहीं कर पा रहे हैं ।।हमारी सेना जल जल कर मरी जा रही है,हम पर दया कीजिए ।उस समय समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने यह शब्द कहा ;-
""साधु रजपूत जात हमारी । सत्यनाम का तेगा बांधे कृष्ण नाम कटारी।। ""और अंततः मुगल फौजों ने समर्थ साई जगजीवन दास जी के सामने हार मानते हुए गायों को लाकर गांव वालों को वापस कर दिया और समर्थ साईं जगजीवन दास जी से क्षमा याचना की।तब समर्थसाई जगजीवन दास जी ने उन लोगों को क्षमा कर दिया, और गायोँ को लेकर गांव वालों के साथ घर लौट आए।। | कीर्ति गाथाएं |
Friday, April 5, 2019
कीर्ति गाथा 10
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment