एक बार समर्थ साई जगजीवनदास जी बैठे थे कि एक सिद्ध सतनामी संत आए और स्वामी जी की दक्षिणावर्त परिक्रमा करके लौट पड़े वहां बैठे लोगों को जिज्ञासा हुई कि देखें कौन हैं और कहां जाते हैं किंतु लोगों ने उन्हें घाघरा तट तक जाते देखा उसके बाद वह संत घाघरा के जल के ऊपर चलते हुए उस पार पहुंच गए और वहां से कहां चले गए यह कोई ना देख पाया तब उन लोगों ने समर्थ साई जगजीवनदास जी से बताया कि वह महात्मा बिना नाव का सहारा लिए घाघरा की धारा में इस प्रकार चले गए जैसे कोई सड़क पर चलता हो तब स्वामी जी ने कहा कि सत्य नाम के जानने वालों को कोई रोक नहीं सकता है जहां चाहे वहां जाए तदुपरांत भोला दास मस्ताने आ गए जो ज्ञान ध्यान में आठों पहर मस्त रहते थे उनका शरीर धूल से आच्छादित था उन्हें अपने शरीर की सुध नहीं रहती थी माघ मास की कड़ाके की ठंड में समर्थ साई जगजीवनदास जी ने उनसे कहा कि ब्रह्मकुंड में स्नान कर लो उसी समय ब्रह्मकुंड में उन्होंने गोता लगाया और सात दिनों के उपरांत जब स्वामी जी ने पूछा कि भोला दास वापस आए कि नहीं तब लोगों ने बताया कि अभी तक नहीं वापस आए हैं तब स्वामी जी ने लोगों को आदेश दिया कि जाकर अभरन कुंड पर देखो तब वहां जाकर लोगों ने देखा कि वह अभरन कुंड से निकल कर आ रहे हैं जब वह स्वामी जी ने कुल्हड़ दास से कहा कि भोला दास को आग से खूब तपावो जब कुल्लहड़ दास ने भ़ोलादास को अग्नि के पास बैठाया तो भोला दास उसी अग्नि की ज्वाला में समा गए कुल्हड़ दास ने जब स्वामी जी से यह घटना बताई तब स्वामी जी ने कहा कि उन्हें अभी बुला कर लाओ उसी समय भोला दास अग्नि ज्वाला से निकलकर स्वामी जी के समक्ष उपस्थित हुए तब समर्थ श्री जगजीवन दास ने कहा कि भोला दास अपना ज्ञान संभालो भक्तों की रीत है कि गुप्त भजन करना और सहज भाव से रहते हुए काम क्रोध को जीतना और जो लोग इसे प्रदर्शित करते हैं और स्वांग और झूठी शान दिखाने वाले होते हैं वै संत नहीं कहे जाते अतः आज से सत्यनाम का ध्यान हृदय में करो और अचल ध्यान समाधि लगा लो,भोला दास ने यह सुनकर उन्हें सादर प्रणाम किया और शांत चित्त होकर अचल समाधि लगा ली।
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Wednesday, March 27, 2019
कीर्ति गाथा 23
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