卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Thursday, March 28, 2019

कीर्ति गाथा 32


          एक  दिन समर्थ साई जगजीवनदास जु  अपने स्थान पर बैठे थे उसी समय एक योगी शेर पर सवार होकर हाथ में सांप का कोड़ा लिए समर्थ साई जगजीवनदास जु  के समक्ष आया और पूछा कि क्या तुम ही सतनामी पंथ चलाते हो समर्थ श्री जगजीवन दास जी के हां कहने पर उसने शेर और सांप को समर्थ साई जगजीवन दास  जी पर छोड़ दिया शेर ने दहाड़ कर मुंह फैलाया और सांप फन फैलाकर दौड़ा तब वहां उपस्थित सभी लोगों में भगदड़ मच गई किंतु समर्थ साईं जगजीवन दास जी अविचल  उसी मुद्रा में बैठे रहे ,शेर और साँप दोनों ही स्वामी जी के निकट आ कर वापस योगी के ऊपर दौड़ पड़े तब  योगी ने भागकर समर्थ साई जगजीवनदास जी के चरण पकड़ लिये  और कहा कि महाराज मेरी रक्षा कीजिए मुझसे बड़ी भूल हुई है  मुझसे अनजाने मे  अज्ञानता बस यह अपराध हो गया,समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने देखा कि वह दोनों योगी को मार डालना चाहते हैं तब उन्हें आदेश दिया कि अपने अपने स्थान पर जाओ मनुष्यों के साथ जंगली जीवो का रहना उचित नहीं है उसी समय  वह दोनों जंगली जीव जंगल की ओर चले गए और योगी ने वहीं रुक कर स्वामी जी से ज्ञान उपदेश लिया।। 
   

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