समर्थ साई जगजीवनदास जी मकान के बाहर ध्यान चबूतरे पर आसन लगाए बैठे रहते थे और कहीं आना जाना नहीं होता था किंतु जो जूता पहनते थे वह पन्द्रह दिन से ज्यादा नहीं चलता था और टूट जाता था चाहे कितना ही मजबूत क्यों ना हो सबको आश्चर्य होता कि स्वामी जी कहीं आते-जाते नहीं है फिर भी जूता क्यों इतनी जल्दी टूट जाता है एक बार साधु लोग तीर्थ यात्रा करके आए और समर्थ साई जगजीवनदास जी से पूछने लगे कि आप यहां कब आए तब समर्थ साई जगजीवनदास जी ने कहा कि थोड़े दिन पहले ही आया हूं जब उन साधुओं से वहां उपस्थित भक्तों ने इस विषय में पूछा तब लोगों को ज्ञात हुआ कि समर्थ साई जगजीवनदास जी समस्त पृथ्वी मंडल पर घुमा करते हैं और मथुरा गया काशी कांची अवंतिका पूरी अमरावती अयोध्या सप्तपुरी जगन्नाथपुरी बद्रीनाथ धाम सेतुबंध रामेश्वरम द्वारिका आदि चारों धामों में से जो सतनाम पंथ की सभाएं होती हैं उनमे चले जाते हैं और उनके जूतों के टूटने का कारण संभवत उनका इस प्रकार भ्रमण करना ही है क्योंकि उन साधुओं ने उन्हें उन्हीं जगहों पर स्वामी जी के दर्शन किए हैं और भक्ति उपदेश पाकर कृतार्थ हुए हैं
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Thursday, March 28, 2019
कीर्ति गाथा 31
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