卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Thursday, March 28, 2019

कीर्ति गाथा 35


          तत्कालीन गोंडा राज्य के राजा गोंडा नगर में रहते थे उनके गुरु का नाम अनूपानंद स्वामी था उसी स्थान के निकट एक सत्यनाम के संत श्री बख्शदास रहते थे वे सदैव सत्यनाम का स्मरण और नारदीय भजन गाया करते थे जिससे अनूपानंद जी विरोध मानते थे और भांति भांति से उपहास किया करते थे और कहते थे कि यह पाखंडी हैं अतः इन्हें इस राज्य में नहीं रहना चाहिए यह बात जानकर समर्थ साईं श्री जगजीवन दास जी ने प्रिय  शिष्य  शिवदास पंजाबी से कहा कि तुम बख्शदास की सहायता हेतु जाओ आदेश  पाकर  शिवदास साधुओं के दल सहित गोंडा पहुंचे और राजभवन के निकट रुक कर नारदीय  भजन गाने लगे जिससे बहुत भीड़ एकत्रित हो गई अनूपानंद जी बहुत क्रुद्ध हुए और अपने शिष्यों को वाद विवाद हेतु भेजा जिससे शिवदास का अपमान हो और वह भाग जाएं जिसकी सूचना शिवदास जी ने एक पत्र के द्वारा समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास भेज दिया,जिसके उत्तर में स्वामी जी ने लिखा की 
""बाद करै  तेहि करन दे  तोहि होइ  जान अजान 
सत्य मंत्र शिवदास है यही सिखाऊँ  ज्ञान 
मारण उच्चाटन वशीकरण मोहन मंत्र उपाय 
जगजीवन दास जो यह करे परे नर्क मह जाय ""
इस उत्तर को पाकर शिवदास ने वाद-विवाद करने वालों से कुछ ना कहा और उठकर राज द्वार पर पहुंच गए और राजा से मिलने की इच्छा प्रकट की राजा ने मिलने हेतु उन्हें राज्यसभा में बुला लिया किंतु अनूपानंद जी राजगुरु ने सभी सभा में उपस्थित लोगों से कहा कि कोई भी व्यक्ति शिवदास जी को प्रणाम बंदना और आदर सम्मान ना प्रदान करें किंतु जब शिवदास जी राज्यसभा के समक्ष उपस्थित हुए तो उनका तेजवान स्वरूप देखकर समस्त सभा मे  उपस्थित लोग उठकर खड़े हो गए और सिर झुका कर बंदगी की और स्वयं राजा ने उन्हें अपने पास बैठाया और सेवक से पान लाने को आदेश दिया जिससे अनूपानंद जी को बड़ा अपमान प्रतीत हुआ तब उन्होंने सेवकों से पान में चूना कत्था आदि मसाला न लगवा कर सिर्फ पान के पत्तों का ही बीड़ा बनवा कर संत शिवदास जी के पास भिजवा दिया जिसे देखकर शिवदास जी कुछ ना बोले और उन्हीं पान के बीड़े को पूरी सभा में वितरित कर एक पान उन्होंने अनूपानंद जी के पास भेज दिया जो पान सभी सभासदों ने  खाए वे  पांन  कत्था आदि मसालों से युक्त एवं स्वादिष्ट थे किंतु अनूप आनंद जी का पान बिना किसी मसाले के सादा पत्ता ही रह गया था, अनूपानंद जी को विश्वास हो गया कि शिव दासजी सिद्ध संत हैं और वह लज्जित होकर शिवदास जी के चरणों में गिर पड़े और कहा कि मुझे क्षमा करें तथा राजा से अपने अपराध को स्वीकार किया और कहा कि इन महात्मा से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए ये पूजनीय हैं उसी समय से संपूर्ण  गोंडा राज्य में सतनामीयों  का आदर सम्मान होने लगा।🌷 
   

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