एक बार साधुओं के भोजन भंडारे लिए समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने पांच बैलगाड़ी भरकर गेहूं मंगवाया ,गाड़ियां जब नदी के किनारे पर आई तो घाट का कर लेने वालों ने गाड़ियों को रोक दिया जब गाड़ी वालों ने बताया कि यह समर्थ जगजीवन दास जी ने साधुओं के लिए मंगवाया है और जल्दी पहुंचना है तो उन्होंने कहा कि समर्थ साई जग जीवन दास जी अगर महात्मा है तो गाड़ियों को नदी में क्यों नही उतार देते हो तुम को नाव बेडे से क्या वास्ता यह सुनकर गाड़ी वालों को बहुत दुख हुआ, और समर्थ जगजीवन दास जी का नाम लेकर बैलगाड़ियां को नदी में उतार दिया, समर्थसाई की कृपा से सभी बैलगाड़ी नदी पार हो गई ,और घाट का कर लेने वाले देखते रह गए जब गाड़ियां नदी पार करके समर्थसाई जगजीवन दास जी के पास पहुंची और गाड़ी वालों ने समर्थ जगजीवन दास जी के दर्शन किए तो समर्थ साई जग जीवन दास जी ने अपनी पीठ पर लगे घाव को दिखा कर कहा कि गाडियां नाव पर ना लाद कर मुझ पर लादकर नदी पार की आगे से ऐसी गलती ना करना परंतु चिंता की कोई बात नहीं है साधुओं के निमित्त यह कार्य हुआ इसमें जो भी कष्ट हो उसमें आनंद ही आनंद है।।
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Tuesday, April 2, 2019
कीर्ति गाथा 64
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