समर्थ साईं का एक रूपया
एक बार समर्थ साईं जगजीवन दास जी ध्यान अवस्था में बैठे नाम जप में तल्लीन थे तभी एक सिद्ध महात्मा प्रकट हुए और एक छड़ी मार कर अदृश्य हो गए ऐसा उन्होंने कई बार कर दिया| तब समर्थ साईं जगजीवन दास ने कहा तुम कौन हो और क्या चाहते हो तुम्हारी इस तिरस्कारिणी विद्या (अदृश्य विद्या) का क्या लाभ है तब वह प्रकट हुए और बोले मुझे परमार्थ हेतु धन चाहिए और मैं इसी प्रकार धन मांगता हूं तो समर्थ साईं जगजीवन दास ने एक रूपया सामने रखकर कहा यह ले लो| इस पर सिद्ध महात्मा ने कहा इतने से मेरा क्या होगा ?मुझे तो बहुत सारा धन चाहिए |तब समर्थ साईं जगजीवन दास ने कहा अदृश्य होना जानते हो और धन देखना नहीं जानते ध्यान से देखो तब उस सिद्ध महात्मा ने देखा कि असर्फियों का भंडार लगा पड़ा है तब समर्थ साईं जगजीवन दास ने कहा जितनी आवश्यकता है ले लो इस प्रकार सिद्ध महात्मा ने आवश्यकता के अनुरूप धन लेकर कहा जैसा आपका नाम सुना था उससे भी बढ़कर पाया और जय जयकार करते हुए चले गए ||ऐसे अनेकों वृत्तांत समर्थ साईं जगजीवन दास के जीवन काल के मिलते हैं जब उन्होंने आर्थिक सहायतार्थ भक्तों को एक रूपया दिया जो अक्षय बन गया |
Wednesday, April 3, 2019
कीर्ति गाथा 70
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