卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Thursday, April 4, 2019

कीर्ति गाथा 79


          एक बार एक साधु गरीब कंगाल का रूप बनाए हुए समर्थ साई  जगजीवन दास जी के पास आया और बोला कि इस संसार में मुझे दो ही कंगाल दिखाई पड़ रहे हैं एक मैं और दूसरा आप, आप इसलिए कंगाल हैं कि मुझ कंगाल को देखकर कुछ देते नहीं ,तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि निर्धन कंगाल नहीं होता कंगाल तो अधर्मी होता है, धर्म करने वाला कभी कंगाल नहीं हो सकता और ना उसको कभी धन की कमी होती है ,वह जहां जाता है भगवान उसे अवश्य धन देता है यह पृथ्वी रत्नों से भरी पड़ी है।यह सुनकर उस आदमी ने कहा मुझे कैसे यकीन हो कि मैंने धन पाया है,तब समर्थ साई जगजीवन दास जी ने कहा संध्या काल में किसी पेड़ की जड़ पर बैठकर वहां की थोड़ी सी मिट्टी हटाना तब देखना ,कंगाल बेषधारी साधु ने वैसा ही किया तो उसे अशर्फियों से भरा हुआ एक पात्र मिला जिसे लेकर वह समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास आया और चरणों में गिरकर बोला आपका वचन सत्य है कि धर्म करने वाला संत कभी कंगाल नहीं होता, और पृथ्वी रत्नों से युक्त है इसके उपरांत उसने उन असर्फियों को साधु संतों की सेवा सत्कार में ब्यय  किया। 
   

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