एक बार स्वामी जी के पौत्र सघन दास जी प्रयागराज स्नान हेतु गए। वहां पर गंगा पार जाने वालों की बहुत भीड़ थी। घाट पर पहुंचकर मल्लाह से नाव द्वारा पार ले चलने को कहा।
तो घाट वालों ने कहा कि अभी रुक जाओ। थोड़ी देर बाद सघन दास जी ने फिर कहा कि कई चक्कर लगा चुके हो अब हमको भी उतार दो। तब भी उन लोगों ने सघन दास जी को नाव पर नहीं चढ़ाया और कहा कि रुको अभी थोड़ी देर में उतार देंगे। तब सघन दास जी बोले कि हम को धोखा देकर बैठने को कहते हो और दूसरों को नाव से उस पार ले जाते हो। इसका क्या मतलब है। तब मल्लाह व शुल्क लेने वालों ने कहा कि बहुत जल्दी है तो नाव का आसरा छोड़ पानी में चले जाइए। नदी सामने मौजूद है। यह सुनकर सघन दास जी खड़ाऊ पहने ही पानी में चल दिए और पानी पर इस प्रकार चलने लगे जैसे कोई जमीन पर चलता है और उस पार पहुंच गए। तो वहां पर मौजूद लोग और मल्लाह आदि सभी दौड़कर उनके चरणों पर गिर पड़े।तब सघन दास जी ने मल्लाहों को क्षमा कर दिया। वहीं पर बहुत से लोग सघन दास जी से मंत्र उपदेश लेकर भक्त बन गये। |
Thursday, April 4, 2019
कीर्ति गाथा 82
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