卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Thursday, April 4, 2019

कीर्ति गाथा 87


          समर्थ साहेब दूलन दास अप्रतिम सौंदर्य के धनी थे चौड़े कंधे उन्नत हृदय प्रदेश बड़ी बड़ी आंखें नयन नक्श भी ऐसे थे कि बड़े ही मनोहर लगते थे आपकी चाल भी राजकुमारों की ही भांति थी आपका कद भी लंबा था और मजबूत भुजाएं देखकर ही किसी शूरवीर राजकुमार योद्धा का भ्रम हो जाता था कहते हैं एक बार समर्थ साहेब जगजीवन दास के दरबार में बहुत से साधु संत बैठे हुए थे और सत्संग आदि चल रहा था उसी समय साहब दूलन दास जी का सभा में प्रवेश हुआ यद्यपि सभी दूर से ही उन्हें आते हुए देख रहे थे साहेब दूलन दास की ऊंची कद काठी चौंड़ा कंधा और उन्नत हृदय प्रदेश के कारण सामान्य चाल में भी गर्बीलापन झलकता था अतः सभी साधु संत उन्हीं की तरफ ध्यानपूर्वक देख रहे थे जब साहेब दूलन दास ने लेट कर स्वामी जगजीवन दास की चरण वंदना की तो स्वामी जी ने कहा दुलारे विनम्रता मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण होता है और संतों को तो  सदा ही विनीत भाव से सर झुका कर ही चलना चाहिए साहेब दूलनदास ने पूछा की  प्रभु क्या मैं  शीश झुका लूं समर्थ स्वामी जगजीवन दास ने कहा हां और बस फिर क्या था साहेब दूलन दास ने उसी समय से सर झुका लिया और आजीवन ही सिर ऊपर ना उठाया और सदा ही भक्ति  भाव लिए गुरु का आदेश मानकर विनय धारण कर सिर झुकाए रखा इस कारण गर्दन की हड्डी दो तीन  इंच ऊपर की ओर उठ गई थी


 " सर झुकाय  कै  फिर ना उठावा
 हाँड  खींचि  ऊपर उठि  आवा "

आप ने अहं भावना ठाट बाट का पूरी तरह त्याग कर दिया यहां तक की सतलोक लीन होने से पहले आपने पूरे परिवार को भी निर्देशित किया कि गुंबद भी अहंकार का प्रतीक है मेरे साईं सतगुरु ने मुझे इस दोष  से बचाए रखा अतः मेरी समाधि मंदिर में कभी गुंबद ना बनवाएं आप के आदेशानुसार आज भी आप की समाधि पर गुंबद नहीं है
सादर बंदगी 
   

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