卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Sunday, April 7, 2019

कीर्ति गाथा 102


          समर्थ साई जगजीवन दास जी के विष्णु लोक जाने की सूचना जब साहेब दूलन दास जी को मिली तो वे बहुत दुखी हुए और विचार करने लगे कि जब मैं समर्थ साईंजगजीवन दास जी के दर्शन करने के लिए जा रहा था तो  मुझे रास्ते से ही वापस कर दिया गया। औरमैं समर्थ साईं जी के दर्शन ना कर सका ।अब मैं सत्य प्रतिज्ञा करके जाता हूं कि यदि मेरी अभिलाषा सत्य है तो समर्थ साईं जगजीवन दास जी का दर्शन अवश्य होगा और उनके हाथ का प्रसाद भी प्राप्त होगा ।मन मे यही धुन और लगन लगाए दूलनदास जी कोटवाधाम पहुंच गए,और जब समर्थ साई जगजीवन दास जी की समाधि पर पहुंचे तो मंत्रमुग्ध हो समाधि को देखते ही रह गए ।एकाएक समर्थसाई जगजीवन दास जी ने उन्हें दर्शन दिया और अपने हाथों से प्रसाद भी दिया जिसे पाकर  दूलनदास जी आनंद मग्न हो अपने घर लौट आए और घर पहुंच कर एक बार फिर दर्शन की अभिलाषा से ध्यान समाधि में बैठ गए। तब एक दंडी का रूप बनाकर समर्थ साई जगजीवन दास जी सामने आए और दूलन दास जी को समाधि से जगाया .समर्थ साई  जगजीवन दास जी को पहचान कर साहब दूलन दास जी उनके चरणों पर गिर गए और स्तुति अर्चना अर्पित कर कहा कि आप मुझे भूल गए और यह आपने कैसा विचित्र रूप धारण किया है ,और मेरे लिए क्या क्या आदेश है? तब श्री समर्थ साई  जगजीवन दास जी ने कहा कि सतनाम पंथ में सेल्ही टोपी धागा एवं सुमिरन माला का महत्व है दूसरे किसी अन्य वेष का नहीं ,यह मुझे  श्री भगवान से आज्ञा मिली है और इस पंथ में यही जारी रखना यह कहकर समर्थ साईं जगजीवन दास जी अंतर्ध्यान हो गए।। 
   

No comments:

Post a Comment