卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Sunday, April 7, 2019

कीर्ति गाथा 101


          समर्थ साईं जगजीवन दास जी के कहने के अनुसार जब सात महीने पूरा हुआ तो समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने अपने पुत्र साहेब  जलाली दास को बुलाकर कहा कि दो अक्षर वाला मंत्र (सत्य नाम) का सुमिरन हर क्षण करते रहना चाहिए यह छूटना नहीं चाहिए यह तीनों काल में सुख देने वाला है इसे ग्रहण करो मेरे पास धन-दौलत खजाना यही है और साधु-संतों से कहा कि हमारे शरीर का दाह क्रिया कर्म ना करना क्योंकि वेदों में लिखा है कि जिसने ब्रह्म ज्ञान में अपने शरीर को जला दिया हो उसके शरीर को नहीं जलाना चाहिए इसलिए समाधि बना देना अगर दाह  क्रिया करोगे तो श्राप दे दूंगा यह कह कर दो अक्षर का मंत्र बार -बार कहते हुए ब्रह्म में लीन हो गए यह समाचार जानकर सब रोने लगे तथा कुल गोत्र एवं गांव वाले कहने लगे कि समर्थ साईं जी ने बहुत जल्दी शरीर का त्याग कर दिया और गंगाजल भी ना पी सके और ना ही गोदान किया और लोगों ने विचार किया कि अब कुल रीति के अनुसार ही  क्रिया कर्म किया जाए उसी समय साहब गोसाई दास जी पहुंचे तो कहा कि समर्थ साई  जगजीवन दास जी की समाधि दी जाएगी दाह  क्रिया कर्म नहीं होगा क्योंकि ऐसा समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा है इसके अतिरिक्त हम और कुछ ना मानेंगे चाहे राजा भी कहे परंतु कुल जाति वालों ने उनका विरोध किया और कहा कि हम दाह कर्म ही करेंगे यह सुनकर समर्थ साहेब गोसाई दास जी बोले कि समर्थ साई  जगजीवन दास जी आपने जो कहा है  उसे यह लोग नहीं मान रहे हैं यदि आपका कथन सत्य है तो दया करके अपने मुखारविंद उसे फिर से कह दीजिए जिससे इन लोगों का संदेह दूर हो जाएगा  उसी समय समर्थ साई  जगजीवन दास जी पुनः उठ बैठे और बोले कि हम कहते हैं कि मेरा अग्निदाह  ना करना बल्कि समाधि बना देना मुझे श्री भगवान से ऐसे ही आज्ञा मिली है तदुपरांत मकान के आंगन को गोबर से लिपवाकर कुश का आसन बिछाया  और गोसाई दास साहब का सहारा लेकर बैठ गए वहीं पर गंगाजल मंगवा कर पान किया और गोदान करके अपने मुखारविंद से यह दोहा कहा 
""संवत अट्ठारह सौ  सत्तरह  वैशाख महीना लाग
 मंगल कृष्ण सप्तमी ,जगजीवन कीन तन त्याग ""
सुख-दुख चार अचार नहि ,नहीं नीर नहीं पौन 
 जगजीवन समझ बिचारि के, किह्यो ताहि घर गौन""
 इसके बाद राम नाम सत्यनाम कहकर भगवान के लोक को चले गए उसी समय आकाश में नौबत  बजी  और दुखी मन से सभी साधु संतों ने समर्थ  साईं जगजीवन दास जी को विधिवत वस्त्र आदि से अलंकृत किया और अर्थी पर लिटा कर समाधि स्थल तक ले गए और समाधि में उतार कर समाधि  में रख दिया उसी समय एक प्रकाश पुंज आकाश मार्ग में प्रकट हुआ और समाधि  के अंदर पूरा प्रकाश फैल गया और फिर उस प्रकाश पुंज ने विमान की आकृति लेकर समर्थ साईं जगजीवन दास जी को उस पर बैठा लिया और आकाश मार्ग में अदृष्य  हो गया उसी स्थान पर समर्थ साई जगजीवन दास जी का समाधि स्थल बनाया गया और सतनाम पंथ की गद्दी पर  साहेब जलाली दास  साहब को आसीन किया गया और पंथ का कार्य पूर्ववत चलने लगा 
   

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