एक बार समर्थ स्वामी जगजीवन दास जी ने बाल बनवाने हेतु प्रसाद नामक नाई को बुलवाया, जब प्रसाद नाई ने बाल भिगोने शुरू किए तो समर्थ साईं जी के बाल इतने कमजोर हो गए थे कि वह उखड़ कर प्रसाद नाई के हाथ में आ रहे थे ,यह अचंभा देखकर प्रसाद नाई स्तब्ध रह गया, तब समर्थ साईं श्री जगजीवन दास जी ने कहा कि प्रसाद किस सोच विचार में पड़ गए हो ,तब प्रसाद नाई ने जवाब दिया कि सरकार आपके बाल बहुत कमजोर हो गए हैं, स्वयं ही टूटकर हाथ में आ जा रहे हैं ,और मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह काया पुरानी हो चुकी है और कुछ दिन का ही इस धरती पर वास है ।यह सुनकर समर्थ साईं जगजीवन दास जी बोले कि अभी सात महीने और मेरा इस धरती पर बाकी हैं ,वैसे जीने का भरोसा तो एक पल भी नहीं करना चाहिए ,और सत्य नाम का ध्यान सुमिरन तो हर समय करते ही रहना चाहिए, यही जीने का सबसे बड़ा फल है ।तदुपरांत स्नान कर समर्थ साईं जगजीवन दास जी विश्राम करने चले आए,किन्तु लोगों को जब इस घटना की जानकारी हुई तो जगह-जगह से साधु संत महंत समर्थसाई के दर्शन करने के लिए आने शुरू हो गए।
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Sunday, April 7, 2019
कीर्ति गाथा 100
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