लाला शंकर दयाल जी के एक पुत्र तथा एक पौत्र था पुत्र को अच्छी शिक्षा दिलाई परंतु उसमें धार्मिकता का अभाव था फिर भी शंकर दयाल जी इसके लिए बाध्य नही करते और कहते कि ""करम अपना अपना"", और उसी कर्मों के अनुसार ही फल का भोग करना पड़ता है शंकर दयाल जी के पास लाला भोला नाथ जी अक्सर सत्संग हेतु आया करते थे एक दिन शंकर दयाल जी के पुत्र के हाथ में पहना हुआ कड़ा कोई उतार ले गया यह देखकर शंकर दयाल जी के पुत्र क्रोधित हो गए और अपने पिता के पास आकर बोले कि आपके पास जो आते हैं उन्हीं में से कोई बच्चे का कड़ा उतार ले गया है उनके अतिरिक्त यहां और कोई नहीं आता है उसी समय भक्त भोला नाथ जी भी वहां पहुंच गए तब शंकर दयाल जी ने कहा कि साहबजादे तुमने बहुत बड़ी अनुचित बात कह दी है जिनके बारे में आपने ऐसा सोचा भी है वह महान पाप है इसलिए अब तुम्हारा कल्याण ना होगा मुझे कड़ा खो जाने का कोई दुख नहीं वरन दुख इस बात का है कि अब वह कड़ा पहनने वाला भी नहीं रहेगा क्योंकि साधु के बारे में ऐसा सोचने वाले का कल्याण नहीं होता है यह सुनकर लाला भोला नाथ जी हाथ जोड़कर खड़े हो गए और लड़के को क्षमा कर देने की प्रार्थना की तब शंकर दयाल जी बोले इसका अपराध क्षमा करने योग्य नहीं है और कुछ दिनों के उपरांत उस लड़के की मृत्यु हो गई
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Sunday, April 7, 2019
कीर्ति गाथा 99
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