एक कायस्थ महोदय जो समर्थ साईं जगजीवन दास जी के शिष्य थे ।जो बहुत गरीब एवं गृहस्थी का बोझ उठाने में असमर्थ थे ।उन्होंने अपने मन में विचार किया कि परदेश जाकर यदि नौकरी पा जाऊं तो गृहस्थी सुचारू रूप से चल सके इसी उद्देश्य से वह घर से चले ,और मार्ग में विचार किया कि समर्थसाई जगजीवन दास जी के दर्शन कर लूँ तो ज्यादा ठीक रहेगा ।समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास जब वह आए तो अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि यदि आपके आशीर्वाद से अच्छी नौकरी मिल जाए तो एक माह के वेतन का प्रसाद चढ़ाऊँगा।समर्थ साई जगजीवन दास जी ने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा यह सुनकर वह समर्थ साईं जगजीवन दास जी को प्रणाम कर दक्षिण दिशा की ओर चले गए और 6 वर्ष तक ₹90 प्रतिमाह की नौकरी करने के उपरांत समर्थसाई जगजीवन दास जी के दर्शन की अभिलाषा लेकर कोटवा धाम की ओर प्रस्थान किया। कोटवा से सौ कोस (320 किलोमीटर )की दूरी पर मार्ग में एक दास के साथ समर्थसाई जगजीवन दास जी मिले उन्हें देख कर आदर सहित चरण बंदगी कर 4 अशरफिया अर्पित की तो समर्थ साईं जगजीवन दास जी बोले कि ₹10 क्यों बाकी रखा, तो उसी समय कायस्थ महोदय ने ₹10 भी अर्पित कर दिए तब समर्थसाईजगजीवन दास जी ने कहा कि मैंने जो ध्यान तुमको बताया वह याद है कि नहीं ?तब कायस्थ महोदय बोले किआपकी कृपा से मुझे याद है और आपके सामने ही करता हूं ।इसके बाद ध्यान मेंआंखें बंद कर ली और थोड़ी देर बाद आंखें खुली तो वहां किसी को ना पाया तब मन में विचार किया कि ध्यान में देरी होने के कारण लगता है समर्थ साई जगजीवन दास जी कहीं चले गए। वहां से चलकर वे स्थान स्थान पर समर्थ साई जगजीवन दास जी के विषय में पूछते और पता ना चलने पर वह आगे बढ़ जाते। एक दिन अचानक एक साधु मिले तो उन्होंने बताया कि समर्थ साईं जगजीवन दास जी को बैकुंठ वासी हुए 5 वर्ष व्यतीत हो गए हैं तुम उन्हें यहां वहां कहां ढूंढ रहे हो ?यह सुनकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और वह चलकर कोटवा धाम पहुंचे और समर्थ साई जगजीवन दास जी के समाधि के दर्शन किए ,इसके उपरांत समर्थसाहब जलाली दास साहेब के दर्शन कर मार्ग में समर्थ साईं जगजीवन दास जी के दर्शन का पूरा हाल व वृत्तांत सुनाया ।जिसे सुनकर जलाली दास साहेब ने उनके भाग्य की सराहना की और कुछ दिन वे कायस्थ महोदय कोटवा में रहकर प्रसन्नता पूर्वक अपने घर चले गए।
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Sunday, April 7, 2019
कीर्ति गाथा 103
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