卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Thursday, April 4, 2019

कीर्ति गाथा 94


          सतनाम पंथ प्रवर्तक परम् समर्थ स्वामी जगजीवन दास साहेब के शिष्य साहब गोसाई दास प्रथम पावा कमोली धाम के वंशानुक्रम मे यशश्वी महान सिद्ध संत स्वामी रघुनाथ दास जी हुए। जिनकी समाधि गोसाई दास साहब की समाधि से उत्तर सदगुरु सरोवर के उस पार है। स्वामी रघुनाथ दास, साहब गोसाई दास के भाई आह्लाद दास के पुत्र गिरधर दास के बड़े पुत्र थे। आप का जीवन बाल्यकाल से ही दिव्य आलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण रहा। स्वामी रघुनाथ दास जी के बाल्यकाल की अनेकों घटनाओ मे एक घटना है कि एक बार वह बेहना मुसलमान के घर बनी हुई रोटी को लेकर खाने लगे जिसका विरोध गाँव वालों और परिवार के लोगो ने किया, तब स्वामी रघुनाथ दास सद्गुरु सरोवर मे कूद पड़े। परिवार के लोगो ने जाल डाल कर उन्हे खोजने की कोशिश की किन्तु वह नहीं मिले। तीन दिन बाद वह मुह मे रोटी दबाये बाहर निकले तब परिवार वालों ने उन्हे एक कोठरी मे बंद कर दिया। स्वामी रघुनाथ जी दरवाजे मे छोटा सा छेद कर बाहर निकल आए। वह दरवाजा आज भी कमोलीधाम मे रखा हुआ है। स्वामी रघुनाथ दास सिद्ध संत हुए। जिनके हजारो शिष्य हुए। वह हुक्का पिया करते थे। एक भक्त ने इस पर संदेह जाहिर किया कि साहब हुक्का पीते हैं तो उन्होने परात मगां कर उसमे हुक्के का पानी डाल दिया ऊपर से चादर उढ़ा दी गई थोड़ी देर खोलने के बाद पूरी परात किशमिश छूआरा बादाम से भरी निकली जिसको भक्तो के बीच बाँट दिया गया। एक बार गाँव मे भीषण सूखा पड़ा था लोग सिंचाई के लिए नाली खोद रहे थे लोगो ने कहा स्वामी जी वर्षा नहीं हो रही है क्या होगा? हम सब लोग भूखों मर जाएंगे। स्वामी रघुनाथ दास जी ने कहा कि नाली खोदना बंद करो आधा घंटे बाद पानी बरसेगा। आधा घंटे के बाद उत्तर दिशा मे बादल उठे घनघोर बारिश हुई ,सारे सूखे तालाब पाने से भर गए। स्वामी रघुनाथ जी का जब अंतिम समय आया तो उन्होने कहा कि हम सत्यलोक को देखना चाहते है कि वहाँ क्या है? और योग साधना द्वारा उन्होने अपने शरीर छोड़ने से पहले भक्तो से कहा कि मेरे शरीर की सात दिन तक रक्षा करना। मैं उस सत्य लोक को जानने के लिए जा रहा हूँ। यदि मैं सात दिनों तक वापस नहीं आऊंगा, तो मेरी समाधि दे देना। किंतु परिवार वालों ने 1 दिन के पश्चात ही समाधि दे दी। आप के परिवार वालों ने दो चंदन के पलंग की व्यवस्था कर दी थी जिस पर सफेद चादर बिछाई जाती है, जो आज भी प्रातः काल सिकुड़ी हुई प्राप्त होती है। जिससे आभास होता है कि कोई न कोई व्यक्ति इस पलंग पर सोया अवश्य है। उपरोक्त पलंग की बुनी हुई रस्सी वर्ष भर में अपने आप टूट जाती है। बगैर स्नान के उपरोक्त पलंग के पास नहीं जाया जा सकता है। प्रत्येक दिन पलंग की धूप दीप आरती होती है। आपने आजीवन सतनाम का प्रचार प्रसार करते हुए जीवन व्यतीत किया। आपकी समाधि पर प्रत्येक मंगलवार व पूर्णिमा को भक्तों और श्रद्धालुओं की अपार भीड़ लगती है। श्रद्धालुओं को मनवांछित फल की प्राप्ति समाधि दर्शन से होती है। 
   

No comments:

Post a Comment