समर्थ श्री जगजीवन दास की कीर्ति दूर-दूर तक चारों ओर फैली हुई थी एक बार पांच सौ साधु संतों का दल कोटवा धाम आया और उनके महंत जी ने समर्थ श्री जगजीवन दास जी से कहा हम दुग्धाहारी संत हैं केवल दूध पीकर ही रहते हैं यदि आप इंतजाम कर सके तो हमारे लिए दूध का इंतजाम करें अन्यथा हम लोग यहां से भूखे प्यासे ही चले जाएंगे यह सुनकर समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने मन में विचार किया कि इस जंगल में इतना दूध ये संत लोग विपरीत समय पर मांग रहे हैं अगर पूरे गांव से भी इनके लिए दूध मंगाए तो भी पुरा नही पड़ेगा जरूर यह सभी संत लोग मेरी परीक्षा ले कर नीचा दिखाने के उद्देश्य से ही ऐसा कर रहे हैं अतः समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा आप सब को जितना दूध चाहिए अभरन सागर से ले लो समर्थ साईं के इतना कहते ही अभरन सागर पूरा दूध में परिवर्तित हो गया सभी साधु संतों ने जमकर दुग्ध पान किया और समर्थ साई से हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हुए बोले जैसी आपकी कीर्ति सुनी थी उससे बढ़कर पाया आप धन्य हैं और कोटवा धाम धन्य है कहते हैं कि इसके बाद कई दशकों बाद तक अभरन सागर का जल दुग्ध की तरह श्वेत वर्ण का प्रतीत होता था
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Thursday, April 4, 2019
कीर्ति गाथा 95
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