समर्थ साहब जगजीवन दास जी का एक ब्राह्मण भक्त था नाम था राम दीनदास वह सदैव ही साहेब की सेवा में उपस्थित रहता था पर कुछ दिनों से स्वामी जी का वात्सल्य प्रेम उस पर अधिक ही उमड़ आया था कुछ तो ऐसी बात थी जो स्वामी जी स्वयं उससे कह नहीं पा रहे थे या कहना नहीं चाहते थे अत: एक दिन स्वामी जी ने राम दीनदास को बुलाकर आदेश दिया कि पास में ही दरियाबाद में पीराशाह जी रहते हैं जाओ उनके दर्शन कर आओ साधु संतों की सेवा और दर्शन करना चाहिए समर्थ स्वामी जगजीवन दास जी का आदेश मानकर रामदीनदास पीरा शाह जी से मिलने दरियाबाद पहुंचे और यह बताया कि समर्थ स्वामी जगजीवन दास जी ने भेजा है और कहा है कि आप के दर्शन कर आएं समर्थ स्वामी का नाम सुनकर पीराशाह ने बड़ी आव - भगत की पास बैठाया और बोले रामदीन दास आप की संपूर्ण आयु 30 वर्ष की है जिसमें 29 वर्ष 6 माह बीत चुके हैं और अब सिर्फ 6 माह ही बचे हैं इसलिए समर्थ साईं जगजीवन दास ने आपको साधु संतो के दर्शन करने के लिए आदेशित किया है रामददीनदास सारी बातें सुनकर बहुत दुखी हुए किंतु समर्थ स्वामी का आदेश और पीराशाह का परामर्श मानकर वह ख्याम दास जी के पास पहुंचे और पुरवा धाम होते हुए साहब देवीदास की भी चरण बंदगी की साहेब देवी दास ने कहा रामदीनदास तुम दुखी ना हो तुम धर्मे धाम जाओ साहेब दूलन दास के दर्शन करो बात मानकर रामदीनदास धर्मे धाम पहुंचे और साहेब दूलन दास को अपनी सारी व्यथा कथा कह सुनाई समर्थ साहेब दूलन दास ने स्वामी समर्थ की इच्छा जानकर रामदीन दास से कहा कौन कहता है कि तुम्हारी उम्र 30 वर्ष है तुम्हारी उम्र 130 वर्ष है ना विश्वास हो तो जाकर पीराशाह से पूछ लो रामदीन दास पुन: ख्याम दास के दर्शन कर साहब देवीदास के पास पहुंचे तो समर्थ देवी दास ने कहा तुम्हारे ऊपर तो सोमवंशी की अपार कृपा हो गई जाओ अब आनंद करो और फिर रामदीनदास पीरा साहब के पास पहुंचे तो पीरा शाह ने रामदीन दास को देखते ही कहा साहेब दूलन दास ने तुम्हारी उम्र 130 वर्ष कर दी है अब तुम्हें कोई भी भय नहीं है जाओ समर्थ स्वामी जगजीवन दास की सेवा करो और घर में आनंद पूर्वक रहो ऐसे अनेकों आख्यान समर्थ साहेब दूलन दास के बारे में मिलते हैं जब बड़े-बड़े पंडितों और संतों द्वारा कम उम्र का कहने पर समर्थ साहेब दूलन दास ने अपने भक्तों की उम्र बढ़ा दी यहां तक कि मरणो परांत तीसरे दिवस भी जीवन दान दिया
सादर बंदगी | कीर्ति गाथाएं |
Thursday, April 4, 2019
कीर्ति गाथा 88
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