卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Thursday, April 4, 2019

कीर्ति गाथा 78


          समर्थ साईं जगजीवन दास के तप के प्रभाव के कारण सरदहा गांव फलने फूलने लगा और धीरे-धीरे संपन्न हो गया। और सभी धन-धान्य से सुखी रहने लगे। नित्य प्रति सिद्ध महात्मा आते थे किंतु संपन्नता आने के बाद लोग अहंकारी होने लगे ,यहां तक कि जमलापुर के ठाकुर लोग  मछली के शिकार को लेकर आये दिन बाद विवाद भी करने लगे, और कहते कि साधु महात्मा के कहने से हम अपने कर्म तथा जमीन जायदाद थोड़ी छोड़ देंगे हम लोग मछली का शिकार करेंगे और खाएंगे, यह देखकर स्वामी जी ने अपने मन में विचार किया कि अब इनका साथ छोड़ देना चाहिए और एक दिन बिना किसी को कोई सूचना दिए शौच के लिए एक सेवक के साथ निकले और सरदहा गाँव छोड़कर कोटवा पहुंच गए, यहां का वातावरण समर्थसाई जगजीवन दास जी को अधिक पसंद आया और वहीं रुक गए, जब वहां के जमींदार को इसकी सूचना मिली तो वह समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास आया और प्रणाम करके कहा कि धन्य भाग्य मेरा और इस जमीन का जहां पर आप ने आकर स्थान ग्रहण किया, कृपा करके अब आप यहीं पर मकान बना कर यहीं पर रहे और हम लोगों को कृतार्थ करें ।तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि अब हम यहीं रहेंगे, इसकी सूचना जब सरदहा गांव में पहुंची तब सभी संत महात्मा तथा घर वाले अपनी संपत्ति के साथ सरदहा छोड़कर कोटवा में रहने के लिए आ गए।  इसके उपरांत सरदहा का अभरन  कुंड घाघरा नदी में विलीन हो गया और गांव भी उजड़ गया यह देख कर वहां के राजा ने सरदहा वापस चलने के लिए समर्थ  स्वामी जी से विनती की परंतु स्वामी जी ने कोई जवाब नहीं दिया, और दल गंजन सिंह की और देखकर कहा कि जगजीवन जग आय,के सत्य नाम की आस ।
कोटवा कोटिन तीर्थ है,जगजीवन के पास।।
 यह सुनकर सब निश्चिंत हो गए ,समर्थ साईं जगजीवन दास जी अब यही रहेंगे और सभी आनंद से वहां रहने लगे और कोटवा धाम में धूमधाम से मेला लगने लगा।। 
   

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