एक बार समर्थ साईं जगजीवन दास जी गंगा स्नान हेतु महाभाँट और कुछ शिष्यों को साथ लेकर चले ,रास्ते में एक पेड़ के नीचे बैठकर विश्राम ध्यान करने लगे, वहीं निकट ही कुछ साधु भोजन हेतु खीर बना रहे थे ,उसी समय बहुत से कौवे पेड़ पर बैठ कर आवाज करने लगे ,परंतु किसी ने कुछ ध्यान ना दिया ,तभी समर्थ साईं जगजीवन दास जी मुस्कुराने लगे यह देखकर साथ के लोगों ने पूछा कि महाराज आप क्यों हंस रहे हैं ?तब समर्थ श्री जगजीवन दास जी ने कहा कि यह लोग जो खीर बना रहे हैं वह स्वयं नहीं खा पाएंगे बल्कि इन कौवों की मंडली खाएगी ऐसा ये कौवेआपस में बात कर रहे हैं ,और ऐसा ही होगा। जब खीर बन कर तैयार हो गई तो उन साधु लोगों का आपस में बाद बिवाद होने लगा और अंततः झगड़ा हो गया और एक साधु ने खीर का बर्तन उठाकर जमीन पर पटक दिया जिससे पूरी खीर जमीन पर गिर गई,भूखे और हताश साधु लोग अपने अपने रास्ते चले गए और उस खीर को कौवों ने खाया, यह देख महाभाँट ने स्वामी जी से हाथ जोड़कर कहा कि महाराज आप सर्वज्ञ हैं और जानवरों की भाषा भी समझ जाते हैं, तदोपरांत स्वामी जी गंगा स्नान हेतु चल दिए।
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Thursday, April 4, 2019
कीर्ति गाथा 71
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