समर्थसाई जगजीवन दास जी के भाई पृथा सिंह समर्थ साईं जगजीवन दास जी की भक्ति भावना का विरोध करते थे। और अपनी मनमानी करने के लिए अपनी पत्नी की सलाह से अलग रहने लगे थे ।वह रोज मछली और चिड़िया का शिकार करते और भेड़ बकरी को मारकर उनका मांस खाते थे ।एक दिन समर्थ साई जगजीवन दास जी ने कहा कि शुभ और अशुभ दोनों तरह के कर्मों का फल अवश्य ही मिलता है, इसलिए जीव हत्या ना किया करो परंतु वह नहीं माने और कुछ दिनों के बाद बीमार हो गए ,और भोजन छूट गया। तब छाती पीट-पीटकर चिल्लाते की चिड़िया हमारी छाती नो नोच रही है, और भेड़ बकरी अपनी सिंह से मेरा पेट फाड़ डाल रहे हैं ,मेरी मौत क्यों नहीं आ रही है।यह कहते हुए बड़ी दीनअवस्था में समर्थ जगजीवन दास जी के पास आकर दया की भीख मांगने लगे ,तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने दया करके अपने हाथों से थोड़ा प्रसाद उठा कर दिया तब उनको शांति मिली ,और आराम से शरीर त्याग कर देव लोक को प्राप्त हुए।
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Thursday, April 4, 2019
कीर्ति गाथा 75
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