卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Thursday, April 4, 2019

कीर्ति गाथा 76


          एक बार समर्थ साईं जगजीवन दास जी अपने दरवाजे पर बैठे थे कि कुछ साधु समर्थसाई जगजीवन दास जी के पास आए और दर्शन कर भोजन हेतु अनाज मांगा ,तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने एक मुट्ठी चावल उनको दिया, जिसे देखकर उन लोगों ने सोचा कि ये  कैसे  महात्मा है गृहस्थों  की तरह थोड़ा सा अनाज देते हैं ,वहां से चलकर वे साधु गांव में घूम घूम कर अनाज मांगते रहे किंतु किसी ने उन्हें खाने पीने को कुछ ना दिया। रात के समय में एक स्थान पर ठहर गए और भूख से व्याकुल होने लगे ,तब उन्होंने विचार किया कि जितने चावल समर्थ साई जगजीवन दास जी ने दिए हैं उन्हीं को पकाकर भूख शांत करनी चाहिए ।तब बर्तन चूल्हे पर चढ़ा दिया तो थोड़ी देर बाद चावल की सुगंध फैल गई तब जाकर देखा कि पूरा बर्तन पके हुए चावल से भरा है ,साधु ने पेट भरकर भोजन किया फिर भी चावल बच गया ,जिसे भिखारियों को दे दिया गया तब उन साधुओं ने आपस में विचार किया कि ऐसे स्वादिष्ट चावल कभी नहीं खाए ,यह समर्थसाई जगजीवन दास जी की ही प्रभुता है ।इसके बाद उन साधुओं ने देखा कि जितने  चावल समर्थ स्वामी जी ने अपने हाथ से दिया था उतने ही चावल अभी भी थैली में भरे हुए हैं यह देखकर वह सब समर्थ साईं जगजीवन दास जी के पास आए और दर्शन करके अपने अविश्वास के लिए क्षमा मांगी कि हमने आपको एक गृहस्थ सोचा था परंतु आप परम  सिद्ध  महात्मा हैं ,इसके उपरांत वह सब प्रस्थान कर गए।
   

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