एक बार समर्थ साईंजगजीवन दास जी सरयू स्नान करने हेतु अयोध्या जी गए, और स्नान पूजा करके ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दिया ।समर्थ साईं जगजीवन दास जी की सिद्धियों के बारे में सुनकर महंत राम प्रसाद दास जी के स्थान के बैरागियों में उत्सुकता हुई कि चलकर स्वामी जी के आचार विचार एवं उपदेश सुनना चाहिए ।जब वह सब एकत्रित होकर समर्थ साईं जगजीवन दास जी के पास आए तो समर्थ साई जगजीवन दास जी ने एक पत्थर का टुकड़ा उठाकर पेड़ के ऊपर फेंका ,उसी समय एक तोता फढ़फड़ाता हुआ पेड़ से जमीन पर गिरा और मर गया।समर्थसाई जगजीवन दास जी ने उसे अपने हाथों में उठा लिया यह देखकर वह सभी बैरागी वहां से उठकर महंत रामदास जी के पास आए ,और कहने लगे कि उन्होंने हमारे सामने एक तोता मारा है, अतः हम उन्हें यहां नहीं रुकने देंगे। तब महंत जी ने कहा कि महात्माओं के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, यदि विश्वास ना हो तो जाकर देखो कि उस मरे हुए तोते का क्या हुआ, यह सुनकर वह सब पुनः समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास आए और तोते को उसी तरह समर्थ जगजीवन दास जी के हाथ में देखा ,उन बैरागियों की उदासी देखकर समर्थ स्वामी जी ने तोते को छोड़ दिया और वह उठकर पेड़ पर जाकर बैठ गया और सत्यनाम सत्यनाम बोलने लगा।यह देखकर बैरागियों को स्वामी जी की महानता और महंत जी की इस बात का कि महात्माओं के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करनी चाहिए और शंका नहीं करनी चाहिए का विश्वास हो गया।।
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Thursday, April 4, 2019
कीर्ति गाथा 73
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