卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Thursday, April 4, 2019

कीर्ति गाथा 72


          एक बार समर्थ साईं जगजीवन दास जी अपने घर पर बैठे थे, और बहुत से दर्शनार्थी भी वहां पर उपस्थित थे, तभी जमीन के एक  छिद्र से चींटों का एक झुंड निकला उसमें से एक चींटा झुंड से अलग हो गया और चौखट के ऊपर चढ़ने लगा किंतु वह चढ़ ना पाया, और गिर गया ।पुनः प्रयास कर वह चौखट पर चढ़ने लगा किंतु ऊपर तक ना पहुंच पाया और फिर गिर गया, इस तरह वह बार-बार प्रयास करता और गिर जाता ,उसके इस प्रयास को देखकर समर्थ साई जगजीवन दास जी हंसे और बोले कि तपोबल ना रहने से कोई कार्य नहीं हो सकता ,उसी समय उन दर्शनार्थियों में बैठे हुए एक ठाकुर ने समर्थ साईं जगजीवन दास जी से कहा कि आपके हंसने और तपोबल के ना रहने की बात का अर्थ समझ में नहीं आया, कृपा करके समझाइए ।तब समर्थ साई  जगजीवन दास जी ने कहा कि पूर्व जन्म के संचित तपोबल के कारण ही व्यक्ति महान बनता है ,यह चींटा इससे पूर्व जन्म में दिल्ली का बादशाह था ,परंतु उस जीवन में मनमाने कार्य और अत्याचार के कारण उसका तपोबल घट गया और मृत्यु उपरांत इस योनि को प्राप्त हुआ ,और चार अंगुल की चौखट भी चढ़ने में असमर्थ है । यह सुनकर ठाकुर ने अविश्वास प्रकट किया, तब समर्थ श्री जगजीवन दास जी ने पूछा के अभी तुम्हारे कितने पुत्र हैं? इस बात का उत्तर ठाकुर जी ने दिया कि उनके पांच पुत्र हैं ,यह सुनकर समर्थ साईं जी ने कहा कि यह तो गलत है ,अतः क्रुद्ध होकर ठाकुर जी वहां से उठकर चले गए ।कुछ समय के उपरांत संयोगवश ठाकुर के पांचों पुत्र मर गए ठाकुर बहुत दुखी हुए ,और अपने मन में विचार किया कि उस दिन समर्थ साईं जगजीवन दास जी की बात का विश्वास ना करने से मुझ पर यह विपत्ति आई है, इसलिए मुझे उन्हीं की शरण में जाना चाहिए और अपने अपराधों की क्षमा मांगनी चाहिए, यह सोचकर वे समर्थ साईं जगजीवन दास जी के समक्ष पहुंचकर क्षमा याचना करने लगे ,और अपना कष्ट कह सुनाया। तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी बोले कि दुखी ना हो ।सत्य तो केवल परमेश्वर जानता है ,तुम्हारे अभी पांच पुत्र और होंगे कुछ समय उपरांत ठाकुर के यहां पांच  पुत्र उत्पन्न हुए और वह सभी जीवित रहे।
   

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