एक ब्राह्मण कई गांव का जमींदार था उस क्षेत्र के हाकिम ने उस पर बकाया मालगुजारी दोगुना वसूल करने का दबाव डाला जब यह ब्राह्मण जमींदार इतनी अधिक मालगुजारी अदा ना कर पाया तो उसकी पूरी संपत्ति जप्त कर के उठा ली जिससे वह दाने-दाने को मोहताज हो गया असहाय होकर गरीबी और लाचारी की हालत में समर्थ श्री जगजीवन दास जी के पास आया और अपनी मुसीबत का हाल बयान किया और साथ ही यह भी प्रार्थना की कि मैं हर तरफ से ना उम्मीद होकर आपकी शरण में आया हूं तब समर्थ श्री जगजीवन दास जी ने कहा कि तुम सूबे के मालिक के पास जाओ और मेरा पत्र देकर उनसे अपनी फरियाद कहो स्वामी जी ने कलम दवात ले कर अपने हाथ से कागज पर पत्र लिखा ""यवनराज मंसूर अली खान बहादुर मालिके अवध इस ब्राह्मण का कार्य सोच विचार कर करें नहीं तो खुद सोच विचार में पड़ जाओगे जैसा चाहो करो"" यह पत्र लेकर ब्राह्मण जमींदार चला गया और अपने मन में सोचा कि कैसे दरबार में पहुंच पाऊंगा और नवाब साहब के हाथ में पत्र दे पाऊंगा फिर भी समर्थ साईं जगजीवन दास जी के दया और कृपा पर विश्वास करके वह दरबार तक पहुंच गया तभी एकाएक अचानक एक चोबदार आया और सामने अपने साथ ले जाकर नवाब के सामने खड़ा कर दिया तब नवाब ने बैठने का हुक्म दिया और आने का कारण पूछा तब उस ब्राह्मण ने पूरी स्थिति से अवगत कराकर समर्थ स्वामी जी का पत्र नवाब को दे दिया जिससे दीवान मूलराज ने पढ़ कर सुनाया जिसे सुनकर नवाब ने उस इलाके के हाकिम को लिखवाया की पत्र पाते ही इस ब्राह्मण जमींदार का समस्त सामान और जमीन दारी का इलाका वापस करके पिछला बकाया माफ कर दिया जाए और पुरानी मालगुजारी ही आगे से वसूली जाए और इस आदेश पालन की सूचना दरबार को भेजी जाए जब ब्राह्मण का यह कार्य हो गया तो वह समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास आया और पूरा हाल बताया तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि अपना काम धर्मानुसार किया करो वह आपदाओं से बचाता है
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Wednesday, April 3, 2019
कीर्ति गाथा 68
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