卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Tuesday, April 2, 2019

कीर्ति गाथा 65


          एक बार बादशाह का प्रधान मनसबदार बादशाह से डरकर समर्थ साई  जगजीवन दास जी की शरण में आया लोगों ने जब इसकी सूचना बादशाह को दी तो शाही लश्कर (फौजों) ने आकर स्वामी जी का घर घेर लिया उस समय वह मनसबदार बहुत दुखी हुआ और सोचने लगा कि शायद अब मैं नहीं बचूँगा तब समर्थ श्री जगजीवन दास जी ने उससे कहा कि तुम नदी पार करके (गंडक )गोंडा क्यों नहीं चले जाते, उसने विश्वास करके समर्थ साईं जगजीवन दास जी को प्रणाम कर उठ कर चल दिया जब लश्कर वालों ने देखा कि वह जा रहा है तो उसके पीछे दौड़े और देखते ही देखते वहअपने पैरों पर चलता हुआ नदी के उस पार पहुंच गया और लश्कर वाले किनारे पर खड़े देखते रह गए ,वहां से लौटकर लश्कर वालों ने पूरी घटना बादशाह को बताई तब बादशाह ने कहा कि उसने एक महात्मा की शरण पकड़ लिया है इसलिए उसको नहीं पकड़ना चाहिए और उसे सूचना दी जाए कि उसके अपराधों को क्षमा कर दिया गया है वह खुशी से आकर अपना कामकाज देखें। 
   

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