एक बार समर्थ साई जग जीवन दास जी अपने मकान पर लंबा-चौड़ा बिछौना बिछवा कर बैठे थे, साथ ही दूलन दास, देवीदास, गोसाई दास, ख्याम दास, नवल दास, अहलाद दास, शिवदास पंजाबी, बिशुन दास मुल्तानी, उदय रामदास, बालदास, प्यारे दास और बहुत से सतनामी साधु संत योगी एवं गृहस्थ लोग बैठे हुए थे। उसी समय समर्थ साई जग जीवन दास जी के गुरु विशेश्वर पुरी जी आए, तो समर्थ साई जग जीवन दास जी ने उनका स्वागत कर बिठाया और विधिवत पूजन सत्कार किया और इसके बाद मंसाराम दास व सुखराम दास पखावज वाद्य यंत्र बजाकर नारदीय भजन गाने लगे, जिसे सुनकर विश्वेश्वरी जी ध्यान मग्न एवं अन्य सभा में उपस्थित लोग आनंदमग्न हो गए, इतने में समर्थ साई जग जीवन दास जी ने अपने मुखार विंदु से होली का राग गया, जिससे सभी आनंदमग्न हो झूमने लगे, तभी एक बृजवासी स्त्री बोल पड़ी कि समाज में होली का उत्साह है परंतु रंग अबीर ना होने से फीका मालूम पड़ता है।
जिसे सुनकर समर्थ साई जग जीवन दास जी ने पूरब दिशा की ओर अपनी दृष्टि उठाई तो रंग बरसने लगा और घुमाकर पश्चिम दिशा की ओर दृष्ट उठाई तो अबीर गुलाल उड़ने लगा और जय जयकार की आवाज चारों ओर गूंज उठी, आठ पहर तक सभी इस रसरंग में मग्न रहे, तदुपरांत समर्थ साई जग जीवन दास जी अघहरण कुंड में जाकर स्नान करने लगे, इसके बाद सभी ने स्नान किया और अपने अपने स्थान की ओर चले गए तथा विशेश्वर पुरी जी भी प्रसन्नतापूर्वक विदा होकर अपने स्थान की ओर चले गए । |
Wednesday, April 3, 2019
कीर्ति गाथा 66
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment