दिवान सुवंस राय समर्थ श्री जगजीवन दास जी के चरणों की भक्ति रखते थे और अक्सर सरदहा दर्शन हेतु आया करते थे एक दिन सुवंश राय ने समर्थ श्री जगजीवन दास जी से दुनियादारी की बातें शुरू कर दी दीवान जी से कहा कि महाराज आपकी कन्या विवाह के लायक हो चुकी है क्या उसके लिए रिश्ते का विचार किया है इस पर समर्थ श्री जगजीवन दास जी ने कहा कि रहवां राज्य में होगा यह सुनकर दीवान जी कुछ ना बोले किंतु मन में विचार किया कि राजा के साथ यदि शादी होगी तो उसमें दहेज मांगा जाएगा जिस का प्रबंध किस प्रकार होगा यह सोचकर वह चिंतित हो गए तभी समर्थ साई जगजीवन दास जी ने उन्हें घर वापस जाने की आज्ञा दे दी वहां पहुंचकर उन्हें ज्ञात हुआ कि राजा रहवां ने बादशाह से बगावत कर के मालगुजारी का धन नहीं जमा किया है जिसके कारण वह इस समय शाही कैद खाने में कैद हैं दीवान जी बादशाह के दरबार में दीवानी का काम देखते थे कुछ दिनों के बाद राजा रहवां दीवान जी के प्रयास से कैद से छूट गए और पुराना बकाया मालगुजारी भी माफ कर दी गई इसलिए राजा रहवां दीवान जी का बड़ा एहसान मानते थे और इस प्रयास में रहते थे कि वह उनके एहसान का बदला चुका सके एक बार राजा साहब दीवान जी के साथ बैठे थे कि बात ही बात में दीवान जी ने कहा कि आप शादी कर लीजिए इस पर राजा साहब ने कहा कि मैं शादी वहीं करूंगा जहां आप कहेंगे तब दीवान जी ने कहा कि क्या सरदहा गांव में समर्थ श्री जगजीवन दास स्वामी जी के घर में शादी करोगे राजा साहब ने जवाब दिया कि उनके घर में मेरा ब्याह होना बड़े गर्व की बात है अगर किसी और जगह पर आप कह देते तो वह भी मुझे मंजूर होता है यह रिश्ता बहुत ही उचित है और मुझे बहुत ही खुशी होगी इसे स्वीकार करके| आप समर्थ श्री जगजीवन दास जी को इसकी सूचना दे दें दीवान जी ने इसकी सूचना समर्थ साईं जगजीवन दास जी के पास पहुंचाई जिस पर समर्थ श्री जगजीवन दास जी ने अपनी स्वीकृति दे दी निश्चित समय पर फल दान की रस्म हुई और प्रसन्नता पूर्वक बारात का स्वागत किया गया और विवाह संपन्न हो गया विवाह के उपरांत समर्थ साई जगजीवन दास जी ने राजा साहेब से कहा कि जो कुछ हमारे पास है आप खुशी से मांग लीजिए तब राजा साहब ने कहा कि क्षत्रियों को समर में युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त हो उनके लिए इससे अच्छा आशीर्वाद क्या हो सकता है और यही मेरी इच्छा है तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने एक टोपी देते हुए कहा कि यह टोपी सिर पर रख कर जिस लड़ाई में जाओगे उसमें तुम्हारे विरोधी की हार और तुम्हारी विजय होगी या मेरा आशीर्वाद है राजा साहब ने उसे खुशी से स्वीकार कर लिया और भात बढ़हार आदि अन्य रस्मों के बाद प्रसन्नता पूर्वक बारात विदा हो गई
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Monday, April 1, 2019
कीर्ति गाथा 50
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