समर्थ साई जगजीवन दास जी के घर पर खेती होती थी किंतु उसका उचित प्रबंध करने वाला कोई ना था जो भी पैदा होता था उसमें परिवार का भरण पोषण रिश्तेदारों की आवभगत साधु संतों की सेवा आदि होता था ,खेती के अतिरिक्त कोई और रोजगार नहीं था, पूजा में जो भी चढ़ावा आता उसका घर से कोई सरोकार ना था क्योंकि वह धन आदि अभ्यागत और दान पुण्य में व्यय होता था, एक बार चार दिन बीत गए परंतु घर में खाने पीने का प्रबंध नहीं हो सका और समर्थ साई जगजीवन दास जी आसन पर बैठे हुए निरंतर दो अक्षर का मंत्र जाप करते रहे और परिवार वाले निराहार बैठे रहे यह जानकर गांव वालों को बहुत दुख हुआ, परंतु महात्मा से कोई क्या कहें ,चौथे दिन जब रात हुई तब यकायक स्वामी जी के सामने उजाला हो गया और सौ बहुमूल्य लाल आकर गिरे तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने आदेश दिया कि इसे इसी छण उठाकर नदी में डाल आओ इन की कोई आवश्यकता नहीं है सेवकों ने उन लालों को उठाकर नदी में फेंक दिया दूसरे दिन सुबह गांव वालों ने स्वामी जी से उजाले के बारे में जानना चाहा तब समर्थ साई जगजीवन दास जी ने बताया कि मेरे पास सौ लाल आए थे जिनका वह उजाला था परंतु वह बिना परिश्रम के पाए गए थे इसलिए उनको घाघरा नदी में प्रवाहित करा दिया यह सुनकर गांव वाले चुप हो गए उसी समय सेठ परमानंद जो वहीं बैठे थे यह सब सुनकर बहुत दुखी हुए और वहां से उठकर अपने घर को चले गए और दो भैंसा गाड़ियों पर आटा चावल नमक और दाल लदवा कर समर्थ साई जगजीवन दास जी के घर ले आए तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने उनको देखकर कहा कि चलो नदी की सैर कर आएं ,परमानंद ने कहा जैसी आपकी आज्ञा और स्वामी जी के साथ हो लिए ,जब नदी पर समर्थ साई जगजीवन दास जी खड़े हुए तो दो घड़े अशर्फियों से भरे हुए किनारे पर आकर लगे समर्थसाई जगजीवन दास जी ने सेठ परमानंद से कहा कि यह धन ले लो इसमें किसी का कोई भय नहीं है तब सेठ परमानंद जी ने उत्तर दिया कि महाराज आपके चरणों के प्रताप से मुझे जो कुछ भी मिला है वह बहुत है ,मैं बिना परिश्रम का धन नहीं लूंगा ,इस पर समर्थ साईंजगजीवन दास जी ने कहा कि धन्य हो तुम और धन्य है तुम्हारी बुद्धि परंतु अभी जो खाद्य सामग्री तुम लेकर आए हो उसमें मेरा क्या परिश्रम, तो मैं उसे कैसे ले सकता हूं इसलिए उसे उठा ले जाओ और अभ्यागतों में बटवा दो उसमें कुछ भी ना बचाना यहां का प्रबंध हो जाएगा इसमें कोई सोच विचार ना करना परमानंद ने आदेश मानकर सामान उठा लिया और अभ्यागतों में बटवा दिया तथा समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने किसी तरह प्रबंध करके भोजन तैयार करवाया और सब लोगों को भोजन कराने के उपरांत स्वयं भी प्रसाद पाया।
|
Monday, April 1, 2019
कीर्ति गाथा 53
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment