समर्थ साई जगजीवन दास जी का एक सेवक तीर्थाटन करने हेतु किसी सुदूर क्षेत्र में गया तब वहां के निवासियों ने समर्थ जगजीवन दास जी और उनके पंथ के बारे में जानना चाहा जिसका वर्णन उस सतनामी संत ने बड़े ही सुंदर ढंग से किया जिसे सुनकर सभी लोग अपना अपना मनोरथ पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगने लगे, समर्थसाई जगजीवन दास जी की कीर्ति गाथा में वे संत इतना आनंद मग्न थे कि सब से कह डाला कि तुम्हारा मनोरथ पूर्ण हो ,और समर्थजगजीवन दास जी के स्थान पर जाकर प्रसाद चढ़ाना परंतु थोड़ी ही देर के बाद उसके मन में विचार आया कि मैंने सब से आनंद विभोर होकर क्या कह दिया कि तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा परंतु यदि किसी का मनोरथ पूर्ण ना हुआ तो सब कहेंगे कि यह कैसा पंथ और कैसे लोग हैं यही विचार करता हुआ वह समर्थ साईं जगजीवन दास जी के पास आया और प्रार्थना करने लगा कि मुझसे बड़ा अपराध हुआ है मैं जिसके लिए सक्षम नहीं था मैंने ऐसा आशीर्वाद लोगों को दे दिया ,इस पर समर्थसाई जगजीवन दास जी बोले कि राम जी की यही इच्छा थी जो तुमने कहा है वह अवश्य पूरा होगा यह सुनकर वे संत निश्चिंत हो गये, कुछ दिनों के उपरांत वही लोग समर्थ जगजीवन दास जी के पास आए और उस संत के आशीर्वाद के फलीभूत होने का वर्णन किया और प्रसाद चढ़ाया।
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Tuesday, April 2, 2019
कीर्ति गाथा 60
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