एक बार एक अमेठिया ठाकुर समर्थ जगजीवन दास जी के पास आए,उस समय दोनों मोर समर्थसाई जगजीवन दास जी के समक्ष नाच रहे थे जिन्हें देखकर वह बहुत मुग्ध हो गए और मन में विचार किया कि इनको पकड़कर ले चलना चाहिए ,समर्थ साहेब जगजीवन दास जी से विदा लेकर वहां से चल दिए और बाद में मोरों को बाग़ से जाल लगाकर पकड़वा कर साथ लेकर अपने घर ले गए वहां पर समर्थ साईं जी के वियोग के कारण दोनों मोरों ने अपने प्राण छोड़ दिए ,जब समर्थ जगजीवन दास जी को इस बात की सूचना हुई कि उनके मोर अमेठिया , के ठाकुर पकड़ ले गए हैं, और वे मोर मर गए हैं ,तब समर्थसाई जगजीवन दास जी ने कहा कि जैसी ईश्वर की इच्छा मोरों का यही भाग्य था और ठाकुर ने अपने धन दौलत के मद में जो कर्म किया है उसका फल उसको मिलेगा ,इधर समर्थ जगजीवन दास जी का ऐसा कहना था कि वह ठाकुर पागल हो गए और घर छोड़कर यहां वहां भीख मांगते हुए मरे।
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Tuesday, April 2, 2019
कीर्ति गाथा 61
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