एक बार मेले का अवसर था और समर्थ साई जग जीवन दास जू अपने दरवाजे पर बैठे हुए नारदीय भजन सुन रहे थे उसी समय एक सेवक ने आकर सूचना दी कि अभरन कुंड के निकट गुदड़ी टोपी पहने मस्तक पर तिलक लगाए एक साधु शिव जी की मूर्ति की पूजा कर रहे हैं और उनके मंत्र जाप करते ही शिव की मूर्ति नाचने लगती है जिसके कारण वहां बहुत भीड़ इकट्ठा हो गई है यह सुनकर समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि शिवजी महाराज ईश्वर हैं उनकी भृकुटी हिला देने से तीनों लोग नाचता है और बड़े-बड़े सिद्ध ज्ञानी ध्यानी भी जिनका दर्शन बड़ी कठिनाई से पाते हैं उनको बुला कर इस तरह नचाना आदमियों के सामर्थ्य के बाहर है इस प्रकार की क्रिया पिशाची विद्या कहलाती है जिसे पाखंडी लोग मंत्र से दिखला देते हैं देवताओं को पूजना चाहिए नचाना नहीं यह बहुत बड़ी अनरीति है और यह हमारे यहां नहीं होनी चाहिए इसलिए जाओ और उन महात्मा से कहो कि अब फिर पूजा करके शिव जी का दर्शन कराएं इस बात को सुनकर साधु जी ने आसन लगाकर पूजा शुरू की और बहुत देर तक मंत्र पढ़ा किंतु मूर्ति अपने स्थान से ना हिली साधु समझ गया कि यहां पर अब मेरी भी चाल ना चलेगी उसी समय समर्थ साई जगजीवन दास जी ने साधु के पास अपने एक सेवक द्वारा चंदन, अक्षत, बेलपत्र ,फल ,फूल ,पान, सुपारी आदि पूजा का सामान देकर भेजा कि महात्मा यदि पूजन कर चुके हो तो उनकी तरफ से भी यह भेंट चढ़ाई जाए और पूजन के बाद हाथ जोड़कर कहना कि जगजीवन दास तुम्हारा दास है एक बार कृपा करके उनकी और भी देख लीजिए और जब समर्थ साईं जगजीवन दास जी की ओर से शिव की मूर्ति की पूजा और अर्चना की गई तो वह मूर्ति वहां से अंतर्ध्यान हो गई यह देखकर उन साधु महाराज जी को बड़ा दुख हुआ कि एक तो मंत्र ना फलीभूत हुआ और मूर्ति भी अंतर्ध्यान हो गई इसलिए अब समर्थ साईं जगजीवन दास जी का दर्शन करके अपने अपराध की क्षमा मांगू संभवत: इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है यह विचार कर वह साधु समर्थ साईं जगजीवन दास जी के पास आए तो उसी मूर्ति को वहां पर समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास पाया और समर्थ साईं जगजीवन दास जी को प्रणाम करके कहा कि मैं सिद्ध नहीं हूं केवल पेट पालने के लिए ही ऐसा करता हूं इसलिए आप हमारे अपराधों को क्षमा करें तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि वेद शास्त्र के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए वेद शास्त्र में पूजन करने को लिखा है वही किया करो इस दिखावे से तुम्हारा पेट नहीं भरेगा यदि प्रभु के सेवक बनकर रहोगे तो जैसे वह पूरी दुनिया को भोजन देते हैं तुम्हें भी देंगे आगे से कभी फिर ऐसा दिखावा दोबारा ना करना और मूर्ति वापस देकर विदा कर दिया
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Monday, April 1, 2019
कीर्ति गाथा 52
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