卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Monday, April 1, 2019

कीर्ति गाथा 51


          एक बार दल गंजन सिंह ने समर्थसाई जगजीवन दास जी से प्रार्थना की कि वह अपनी लड़की का विवाह राजा हड़ाहा से करना चाहते हैं यह  बात सुनकर समर्थ साहेब जगजीवन दास जी ने कहा कि ऐसा ही होगा दल गंजन सिंह ने राजा साहब से बात की और विवाह तय हो गया नियत तिथि पर विवाह संपन्न हुआ उसके उपरांत जब राजा साहब समर्थ साईं जी के दर्शन हेतु आए तो समर्थ साई  जगजीवन दास जी ने राजा को आशीर्वाद दिया कि किसी विरोधी से ना डरना और कभी युद्ध में तुम्हारी हार ना होगी इसके उपरांत प्रसन्नता पूर्वक बारात विदा हो गई कुछ समय उपरांत बादशाही फौजों ने वाला हड़ाहा  राज्य पर चढ़ाई की और  शाही फौजों ने कयामपुर गांव में अपना डेरा जमाया उनसे युद्ध करने के लिए जब राजा ने अपने सैनिकों के साथ उनका विरोध किया तब शाही फौजों ने बंदूक और तोपों से गोले  बरसाने शुरू किये  उस समय राजा ने अपने मन में विचार किया कि स्वामी जी ने हमें आशीर्वाद दिया था कि विरोधी से कभी ना डरो और ना ही  कभी युद्ध में हार होगी यह विचार आते ही राजा ने सोचा कि अब हमें नहीं डरना चाहिए क्योंकि हमारी हार नहीं हो सकती इसलिए दूर से क्यों लड़ाई लड़ी जाए इसके बाद राजा ने अपना आक्रमण तेज कर तेजी से तोपों पर कब्जा कर लिया जिसके उपरांत तलवार की लड़ाई शुरू हो गई और बादशाह की फौज डर कर भागने लगी क्योंकि उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि हजारों आदमियों की फौज उनका पीछा कर रही है इसलिए वह सब भाग गए 
   

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