एक बार एक फकीर समर्थ साई जग जीवन दास जी की सिद्धियों की परीक्षा लेने के लिए सरदहा गांव में आया और समर्थ साई जग जीवन दास जी से आकर कहा कि मैं हमेशा अफीम खाता हूं मुझे अफीम चाहिए तब समर्थ साई जगजीवन दास जी ने एक सेवक को संकेत किया कि इनको दे दो जब सेवक ने अफीम फकीर को दे दी तो फकीर बोला कि मैं मन भर अफीम खाऊंगा यह टके सेर बिकती है इसका इतना लालच करते हो कि मुझे तोला माशा भर दिखाते हो यह सुनकर स्वामी जी ने अनुमान किया कि यह मामूली भिक्षु फकीर नहीं है और अपने हाथ से उसे एक रत्ती के लगभग अफीम दे दी और कहा कि इसे खा लो यदि और जरूरत पड़े तो मांग लेना फकीर ने जैसे ही उसे खाया उसकी आंखें बंद होने लगी मुंह सूख गया और पेट में आंते (खुष्क होने ) सूखने लगी तब परेशान होकर उसने पुकारा कि स्वामीजी मेरी खता माफ करो मैं अपने किए का फल पा गया हूं आपके बारे में जो कुछ भी सुना था उससे बहुत ज्यादा देखा तब स्वामी जी ने थोड़ा सा जल उसके मुंह में डाल दिया जिससे उसकी आंखें खुल गई और होश दुरुस्त (ठीक )हो गए फिर उसने स्वामी जी को प्रणाम किया और प्रसन्न मन से घर चला गया।
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Monday, April 1, 2019
कीर्ति गाथा 55
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