卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Tuesday, April 2, 2019

कीर्ति गाथा 58


          एक बार मंशादास और सुखराम दास गोंडा में शिवदास पंजाबी के पास गए और समर्थ साई जग जीवन दास जी ने जो संदेश दिया था उसे सुनाया उसी समय वहां पर बख्स दास पहुंच गए और तीनों लोगों को यथोचित बंदगी की उसके बाद उन लोगों को साथ लेकर अपने घर की ओर चल पड़े थोड़ी दूर चलने पर एक गाय शिव दास जी के समक्ष आकर खड़ी हो गई उसकी आंखों में आंसू बह रहे थे तब बख्स दास जी ने कहा कि महाराज इस गाय का बच्चा मर गया है जिससे यह बहुत दुखी है और आपके सामने रो रही है तब शिव दास जी ने अपने मन में विचार किया कि ब्राह्मण और गाय का दुख  सुनना भी उचित नहीं है यह  विचार कर गुरु का दिया हुआ मंत्र पढ़कर गाय के मृत बच्चे के ऊपर फूँक  दिया उसी क्षण वह बछिया उठ कर खड़ी हो गई और गाय के पास दौड़कर पहुंच गई जब इस घटना की सूचना राजा तक पहुंची तब राजा ने कहा कि किसी दिन उनकी सिद्धता भी परख लूंगा एक  दिन शिव दास जी के सामने साधु लोग बैठे नारदीय  भजन गा रहे थे कि उसी समय राजा की सवारी उधर से निकली और राजा के साथ चल रहे लोगों ने राजा से कहा कि महाराज यह वही फकीर है जिसने बछिया को जिंदा कर दिया था इस पर राजा ने चौकीदारों को हुक्म दिया कि उनको इसी समय मेरे राज महल में ले आओ यहां आकर वह हमको अपना चमत्कार दिखाएं चौकीदारों ने जब शिवदास जी को इसकी सूचना दी तो वहीं पर बैठे हुए सुखराम दास जी ने कहा कि राजदरबार में हम लोगों का क्या काम हम तो दरबार में जाने के लायक कपड़े भी नहीं पहने हैं और ना ही पैरों में जूते  हैं  इतने में शिव दास जी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि ऐसा कहने से कोई लाभ नहीं और उठकर चोबदारों के साथ राज दरबार में पहुंच गए उन्हें देखकर राजा ने कहा कि तुम लोग गरीब आदमियों को धोखा देकर सिद्ध बनते हो आज हमको सिद्धता  दिखाओ नहीं तो हम तुम्हें राज्य में ना रहने देंगे शिवदास जी बोले कि अभी अग्नि प्रकट करता हूं जिससे जलकर सब ख़ाक हो जाएगा तभी देख लीजिएगा उसी समय दरबार में राजगुरु अनूपानंद स्वामी जी आए जो शिव दास जी की भक्ति सिद्धता को जान चुके थे उन्होंने राजा को समझाया कि महाराज जी ये लोग  भजनानंदी संत महात्मा हैं उनका सत्कार करना चाहिए और इनसे सिद्धता दिखाने जैसी बातें कभी नहीं करनी चाहिए  तब राजा ने उठकर हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि मेरे अपराधों  को क्षमा करें इसके बाद उत्तम वस्त्र रुपया और अशर्फी मंगा कर उनका पूजन किया और दो  गांव का माफीनामा भेंट किया शिव दास जी वहां से उठकर चले आए और पहले की भांति रहने लगे गांव की माफीनामे  का हाल जब समर्थ साई जग जीवन दास  जी को मालूम हुआ तब स्वामी जी ने एक पत्र लिखा जिसमें लिखा था कि संसार माया का जाल है और इससे बचकर तभी कोई निकल सकता है जब मन को हर तरफ से खींचकर नाम के सुमिरन में लगा दे इस पत्र को पढ़ते ही शिव दास जी उठकर खड़े हो गए और सरदहा  गांव की ओर चल पड़े समर्थ साई  जगजीवन दास जी के पास आकर चरण बंदगी की और वहीं रहकर सुमिरन भजन करने लगे और माफीनामे मे मिले  गांव को छोड़ दिया 
   

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