एक बार औघड जोगी सरदहा में आकर एक बड़ा सा चबूतरा बनाकर उसमें बैठकर पिशाची मंत्रों से मसान जगाने लगा जिसे देखने के लिए काफी भीड़ इकट्ठा हो गई। वह किसी से कहता कि तुम्हारे घर का भूत प्रेत निकाल दूंगा किसी से कहता तुम्हें लड़का दूंगा और पिशाची विद्या से तरह-तरह के तमाशे दिखाता था, जब इसकी सूचना समर्थ साईं जगजीवन दास जी के पास पहुंची तब आपने कहा कि ये लोग वेद शास्त्र के विरुद्ध कार्य करते हैं और संसार को ठगते हैं चलो उसका चबूतरा हमें भी दिखाओ और उठ कर चल दिए एकाएक उस चबूतरे के पास ऐसी हवा का बवंडर चलने लगा कि चबूतरे की तमाम मिट्टी उड़ गई जिससे वह औघड़ समझ गया कि यहां मेरी दाल नहीं गलने वाली, समर्थ श्री जगजीवन दास जी की महिमा अपरंपार है और यह भी देखा कि समर्थजगजीवन दास जी के आने पर बहुत बड़ा प्रकाश फैल गया है, जिससे वह औघड़ छिपने का प्रयास करने लगा, इस से समर्थजगजीवन दास जी समझ गए कि इसको लज्जा आ गई है, और कहा कि कहां तक छुपोगे, क्यों ऐसा काम करते हो कि जिससे छुपना पड़ता है ,सामने आओ और इस कार्य को छोड़ दो तब औघड़ ने सामने आकर समर्थ साई जगजीवन दास जी के चरणों पर सिर रखकर कहा कि मेरी खता (गलती ) माफ हो मैं आपके तेज प्रकाश के सामने नहीं देख पा रहा हूं अब कभी ऐसा ढोंग नहीं करूंगा और क्षमा मांग कर चला गया।
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Monday, April 1, 2019
कीर्ति गाथा 57
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