दिवान सुवंश राय के कोई संतान न थी जिसके लिए उन्होंने बहुत दुआ ताबीज की परंतु कोई लाभ ना हुआ निराश होने पर वह समर्थ साईं जगजीवन दास जी के दर्शन हेतु चले उसी समय समर्थ साई जगजीवन दास जी ने अपने सेवकों से कहा कि आज दीवान सुवंशराय आ रहे हैं थोड़ी देर बाद दिवान सुवंश राय ने आकर स्वामी जी को प्रणाम किया और समर्थ साई जगजीवन दास जी ने बगैर कुछ पूछे अपने हाथ से चार लौंग प्रसाद स्वरूप उन्हें दे दी और कहा कि अभी घर लौट जाओ इतना सुनकर दीवान जी उठ खड़े हो गए और प्रणाम करके चल दिए थोड़ी दूर गए होंगे कि स्वामी जी ने फिर वापस बुलवा लिया और पूछा कि लौंगे कहां हैं दीवान जी ने जब उन्हें वह लौंगे दिखाई तब उन चार लोगों में से एक वापस ले ली और शेष तीन लौंगे छोड़ कर कहा कि अब जाओ इस पर दीवान जी ने सादर कहा कि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आप ने बिना कुछ पूछे हुए मेरा मनोरथ पूरा कर दिया परंतु मैं यह ना समझ सका कि आपने प्रसाद की एक लौंग वापस क्यों ले ली इतना सुनकर समर्थ साई जगजीवन दास जी भवानी दास की ओर देखने लगे तब भवानी दास जी ने स्वामी जी का आदेश समझ कर उसकी व्याख्या इस प्रकार की कि तुम्हारे चार पुत्र होंगे उनमें एक लड़का थोड़े दिन बाद जीवित ना रहेगा उसका दुख ना करना और अब घर चले जाओ सुवंशराय ने समर्थ साई जगजीवन दास जी को प्रणाम किया और घर चले आए उचित समय पर उनके घर चार लड़के पैदा हुए परंतु उनमें से केवल तीन ही जीवित रहे जिन से आगे का वंश चला
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Monday, April 1, 2019
कीर्ति गाथा 49
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