एक बार समर्थ साई श्री जगजीवन दास जी डलमऊ के गंगा घाट से वापस लौट रहे थे तो मार्ग में अनेकों भक्त सेवकों ने स्वामी जी से रुक कर प्रवचन की प्रार्थना की और अपने अपने गांव ले जाने की जिद करने लगे तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने धर्मे गांव में आने के लिए उन लोगों से कह दिया साहेब दूलन दास जी को जब यह समाचार मिला तो है प्रसन्नता से समर्थ साई जगजीवन दास जी को लाने के लिए चल पड़े और समर्थ साई श्री जगजीवन दास जी के दर्शन कर उनके चरणों में काफी समय तक पड़े रहे समर्थ साईं जगजीवन दास जी बार-बार उन्हें उठाने का उपक्रम करते परंतु आनंद मग्न दूलन दास जी चरण ना छोड़ते तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि हमारा तुम्हारा अंतर कभी नहीं होता क्यों नहीं उठ रहे हो और जोर लगाकर उन्हें उठाकर अपने हृदय से लगा लिया तब साहेब दूलन दास जी बोले गोपियों को उधौ द्वारा दिए गए ज्ञान जैसा व्यवहार करके मुझे भ्रम मे ना डालिए साईं! तदुपरांत दूलन दास जी समर्थ श्री जगजीवन दास जी को अपने घर ले आए और एक उच्च आसन पर आदर सहित बैठाकर चरणामृत का पान कर समस्त परिवार के सदस्यों को दिया और तरह तरह के पकवान बनवाकर समर्थ साई जगजीवन दास जी और अन्य भक्तों को भोजन कराकर स्वयं महा प्रसाद ग्रहण किया तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि लड़की का ब्याह करना है इस हेतु उचित राय और परामर्श दो कि कहां विवाह करना चाहिए इस पर दूलन दास जी बोले कि तिलोई के राजा के साथ विवाह होगा समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा जैसा आपने सोचा होगा वह अच्छा ही रहेगा इसके बाद वहां से विदा होकर समर्थ साई जगजीवन दास जी अपने स्थान को लौट आए इसके बाद समर्थ साहेब दूलन दास जी अपने साथ नाई बारी और 50 सेवकों को साथ लेकर तिलोई राज्य के सेमरौता राज्य पहुंचे वहां पर राजा ने उनका उचित आदर सत्कार कर बैठाया और उनके आने का प्रायोजन पूछा तब साहेब दूलन दास जी ने कहा कि लड़की का विवाह तुम्हारे साथ करने आए हैं इसमें दो बातें हैं या तो ब्याह करो या राज्य छोड़ो यह सुनकर राजा बोले की विवाह स्वीकार है और उसी समय पंडितों को बुलाकर फलदान की तिथि एवं ब्याह की तिथि निश्चित कर दी फलदान चढ़ाकर साहेब दूलन दास जी वहां से विदा होकर समर्थ साई श्री जगजीवन दास जी के पास आकर शुभ समाचार बताने लगे समर्थ साई श्री जगजीवन दास जी ने कहा कि बहुत अच्छा हुआ अब विवाह की तैयारी करो बाकी सब सामान तैयार है नियत तिथि समय पर बारात आई और वेद रीति कुल रीति एवं लोक रीति से विवाह संपन्न हुआ दूसरे दिन बड़हर भात के लिए जब बारात को बुलाया गया तो राजा ने कहा यदि भोजन में मांस ना होगा तो हम भोजन ना करेंगे तब वहां उपस्थित लोगों ने समझाया कि यह संभव नहीं है क्योंकि यहां मांस नहीं खाया जाता तब राजा ने कहा कि वह खुद मांस नहीं खाते तो ना खाएं लेकिन उनके कारण हम लोग भी ना खाएं यह आवश्यक नहीं आज हम ब्याह करने आए हैं उन्हें हमारी खुशी स्वीकार होनी चाहिए और जो हमारा आहार है उन्हें हमको देना चाहिए यदि उन्हें स्वीकार नहीं तो हम भोजन नहीं ग्रहण करेंगे इसके अतिरिक्त हमें अब और कुछ भी नहीं कहना है इसकी सूचना जब समर्थ साईं जगजीवन दास जी को मिली तो समर्थ साहेब जगजीवन दास जी हंस कर बोले कि बड़े बेढब हठी हैं और मसाला लगाकर भाटा (बैंगन ) की सब्जी बनाने का आदेश दिया और राजा से कहला भेजा कि हमें आपकी खुशी स्वीकार है और जब सब्जी बन कर तैयार हो गई तो बाराती बुलाए गए और भोजन परोस दिया गया भाटा की सब्जी माँस की भांति हो गई है अर्थात मांस में बदल गई जिसे ठाकुरों और अन्य बारातियों ने मांस की तरह खूब छककर खाया और प्रसन्नता व्यक्त की इसके बाद लड़की सहित बारात प्रसन्नता पूर्वक विदा हो गई परंतु उसी दिन से भांटा खाना सतनामियों के लिए वर्जित हो गया क्योंकि समर्थ साईं की कृपा से वह बैगन मांस में बदल गया था
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Sunday, March 31, 2019
कीर्ति गाथा 47
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