दल गंजन सिंह ठाकुर खजूरी गांव में रहते थे उन्होंने समर्थ साई जगजीवन दास जी से मंत्र उपदेश लिया था वह भक्ति मार्ग पर चलने वाले ज्ञानी पुरुष थे एक बार लोक व्यवहारिक व्यय से दुखी होकर स्वामी जी से अपना कष्ट कहने का मन बनाया जब वह समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास आए तो समर्थ साई जगजीवन दास जी ने उन्हें आदर पूर्वक बैठा कर उनका हाल चाल पूछा तब भक्त दल गंजन ने अपनी व्यथा व्यक्ति की जिसे सुनकर स्वामी जी ने एक पैसा उनके हाथ में उन्हें दे दिया जिसे लेकर वह अपने घर ले आए और उस दिन से मालूम नहीं कहां से धन बढ़ने लगा और सारे कष्ट दूर हो गए दलगंजन सिंह की जमीन दारी में ही समर्थ साई जगजीवन दास जी की खेती होती थी इसलिए दल गंजन सिंह ने सोचा कि समर्थ साई जगजीवन दास जी से लगान नहीं लेना चाहिए और यही बात उन्होंने स्वामी जी से कह दी जिस पर समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि जैसा नियम है उसके अनुसार लगान अवश्य दिया जाएगा जब दल गंजन सिंह साठ वर्ष की आयु को प्राप्त हुए और अपना अंतिम समय सन्निकट जानकर समर्थ साई जगजीवन दास जी के दर्शन की इच्छा व्यक्त की और कहा कि यदि बिना दर्शन मेरा दम टूट जाए तो मेरा अंतिम संस्कार ना करना पहले समर्थ साई जगजीवन दास जी को सूचना देना इतना कहने के बाद दल गंजन सिंह की मृत्यु हो गई और उनकी इच्छा अनुसार उनके शरीर को एक कोठरी के अंदर रख दिया गया और समर्थ साई जगजीवन दास जी को सूचना भेजने का विचार होने लगा कि अकस्मात उसी समय समर्थ साई जगजीवन दास जी स्वयं ही वहां पहुंच गए और अपने सेवक दलगंजन सिंह को पूछने लगे और उन लोगों द्वारा सब समाचार सुनकर समर्थ साई जगजीवन दास जी ने कहा कि दल गंजन सिंह मरे नहीं हैं कोठरी के बाहर से उन्हें मेरे आने की सूचना दो जब ऐसा किया गया तो उसी समय दल गंजन सिंह उठकर कोठरी से बाहर आए और समर्थ साई जगजीवन दास जी की चरण बंदगी करने लगे तदोपरांत समर्थ साई जगजीवन दास जी अपने स्थान वापस चले जाए और भक्त दलगंजन सिंह उसके बाद 60 वर्ष तक और जीवित रहे इस तरह कुल 120 वर्ष का जीवनकाल पाया
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Sunday, March 31, 2019
कीर्ति गाथा 46
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