卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Sunday, March 31, 2019

कीर्ति गाथा 45


          शिवप्रसाद क्षत्रिय समर्थ साई जगजीवन दास जी के सेवक थे और बरदौला नामक गांव में रहते थे एक बार वह समर्थ साई जगजीवन दास जी  के दर्शन हेतु आए तब समर्थ साई जगजीवन दास जी ने कहा ठाकुर कुशल क्षेम कहो तब शिवप्रसाद बोले कि महाराज मैं  ठाकुर नहीं हुं  मैं गांव की रियाया की तरह रहता हूं ठाकुर तो हमारे गांव के मिल्की हैं वह गांव का अधिकतम धन प्रजा से लूट मार कर हाकिम को देते हैं जिससे हम को रियाया  बन  कर भी उस गांव में रहने में कठिनाई होती है किसी से कुछ कहते नहीं बनता इस पर समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि ठाकुर तो तुम्हारी जाति का नाम है जमीन  से जमींदार बनता है जमींदार बनाना भगवान के लिए कोई मुश्किल नहीं है इसलिए तुम गांव ना छोड़ना हाकिम उसी से नाराज होता है जो उसका हुक्म ना माने यह सुनकर शिवप्रसाद घर लौट गए कुछ दिनों बाद हाकिम ने मिल्की  जमींदार को बुलवाया किंतु वह हाजिर ना हुआ तब उसने शिवप्रसाद को बुलाया और गांव का हाल-चाल पूछा  तब शिवप्रसाद ने कहा कि गांव के मालिक मिल्की  हैं वह हमको गांव में नहीं रहने देंगे तब हाकिम ने कहा कि कुछ चिंता ना करो मेरी मदद रहेगी सिपाहियों के साथ जाकर गांव का बंदोबस्त करना शिव प्रसाद के बंदोबस्त से सब लोग खुशी से अपना कार्य करने लगे पुराने जमींदार ने हाकिम की नाराजगी देखकर और बंदोबस्त शिव प्रसाद द्वारा करने पर अपनी प्रार्थना लेकर नवाब शुजाउद्दौला के दरबार में हाजिर हुआ वहां पर उसके खानदान के एक साहब शुजाउद्दौला के यहां नौकर थे जिसकी मदद से उसने यह दरखास्त दी कि उस पर हाकिम ने जुल्म किया है उसे उजाड़ दिया है और गांव का बंदोबस्त दूसरे आदमी को दे दिया है इसके लिए उसके साथ न्याय किया जाए नवाब के दरबार से हुक्म हुआ कि गांव का बंदोबस्त उसे वापस कर दिया जाए यह आदेश पत्र लेकर वह चकलेदार के पास आया और कचहरी में वह आदेश पत्र निकाल कर पेश करना चाहा उसी समय मालूम नहीं कहां से एक बंदर आया और आदेश पत्र उसके हाथ से लेकर पेड़ पर चढ़ गया और उसे फाडकर टुकड़े-टुकड़े कर उसे फेंक दिया चकले दार  को यह भी ना मालूम हो सका कि उस पत्र में क्या आदेश था और दूसरा आदेश पत्र दरबार से लाने के लिए कहा शाही दरबार में आकर दूसरा आदेश पत्र लेकर जब चकलेदार को देना चाहा तो उसी समय पर फिर से  एक बंदर ने  पहुंचकर उसे ले जाकर फाड़ डाला तब वहां के लोगों ने कहा कि तुम बदनसीब हो पता नहीं बंदर कहां से आता है और तुम्हारा कागज लेकर फाल डालता है तब चकलेदार ने दरबार में एक पत्र भेजकर बताया कि बरदौला  के पुराने जमींदार दो बार आदेश पत्र लेकर आए किन किंतु उनके हाथ से कचहरी में ही बंदर उठा ले गया समझ में नहीं आता कि इसका क्या कारण है उनके बदनसीबी से परेशान होकर मैंने बरदौला  गांव शिव प्रसाद को ही दे दिया है जो समर्थ साईं जगजीवन दास का भक्त भी है भविष्य में जो आदेश होगा उसका पालन किया जाएगा तब नवाब साहब ने आदेश दिया कि तुमने जिसको गांव का बंदोबस्त दिया है उसी को जमीनदारी  भी दे दो यही उचित है उसी समय से शिवप्रसाद सिंह निडर होकर जमीनदारी  करने लगे 
   

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