एक महाजन प्रदेश से कमाई करके घर वापस लौट रहा था कि रास्ते में चोरों ने उसका सब सामान एवं रुपया चुरा लिया जिससे उस महाजन को बहुत दुख हुआ महाजन समर्थ साई जगजीवन दास जी का प्रताप सुन चुका था इसलिए विचार किया कि मुझे उनके पास जाकर अपना हाल बताना चाहिए वह सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं तो मेरा भी कष्ट दूर करेंगे और भविष्य में जहां अन्नजल भाग्य में होगा वहां चला जाऊंगा जब वह समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास पहुंचा तो संयोग बस वह चोर भी स्वामी जी के पास बैठे थे समर्थ साईंजगजीवन दास जी ने महाजन और चोर दोनों के मनोभावों को अपने ज्ञान चक्षु से जान लिया और चोरों की ओर देखकर कहा कि संसार में मानव तन पाना बहुत दुर्लभ है क्योंकि इसी शरीर में धर्म-कर्म एवं उपकार करने की सामर्थ है तथा जिसने धर्म को जानकर भी अधर्म किया और मन में यह विचार किया कि अधर्म से हमारा क्या बिगड़ेगा तो उसका कभी कल्याण नहीं होता उत्तम धर्म तो यह है कि मनुष्य अपने परिश्रम का धन अर्जित करें दूसरों का धन ना ले और ना ही धर्म करने में देर करें और शर्म करें और जो अच्छी बात सुने उसको माने क्योंकि जिसने उपदेश सुनकर ना माना और दंड पाकर अच्छा कार्य किया उसकी निंदा होती है यह सुनकर वह चोर भयभीत हो गए कि समर्थ साई जगजीवन दास जी ने उनके क्रियाकलाप को जान लिया है और समर्थ साई जगजीवन दास जीके दर्शन के प्रताप से और कथन से चोरों की बुद्धि की जड़ता समाप्त हो गई और वह हाथ जोड़कर समर्थ साईं जगजीवन दास जी के चरणों में गिरकर बोले कि महाराज हमें क्षमा करें और आप जो आज्ञा देंगे वही करूंगा और समर्थ साईं से उपदेश देने की विनती की, इस पर समर्थ जगजीवन दास जी ने कहा कि रास्ते में जोें तुमने सामान और रुपए चुरा लिया है उसे वापस कर दो फिर जो कहना चाहते हो वह कहना ,उसी समय चोरों ने सामान व रुपया लाकर सामने रख दिया तब समर्थ साई जगजीवन दास जी ने महाजन की ओर देखकर पूछा कि यही तुम्हारी चोरी हो गई थी ,और चोरों से कहा कि क्या इसी महाजन की वस्तुएं चुराई थी इस पर दोनों पक्षों ने कहा कि हां ऐसा ही है तब वह महाजन अपना सामान और रुपए लेकर प्रसन्नता पूर्वक घर की ओर चला गया और चोर लोगों ने स्वामी जी से मंत्र उपदेश लेकर नाम साधना शुरू की और प्रसन्न होकर अपने घर की ओर चले गए।
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Saturday, March 30, 2019
कीर्ति गाथा 44
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