卍 ॐ जगजीवन नमो नमः श्री जगजीवन नमो नमः। जय जगजीवन नमो नमः जय जय जग जीवन नमो नमः।। 卍

Saturday, March 30, 2019

कीर्ति गाथा 43


          एक बार समर्थ साई जगजीवन  स्वामी जी के एक सेवक ने दो  मोर भेंट किए जिन्हें स्वामी जी ने स्वीकार कर उस स्थान पर रहने की अनुमति दे दी हुए दोनों मोर मकान बाग जंगल में रहने लगे और वे  दोनों मोर सत्यनाम बोला करते थे तथा स्वामी जी के पास आकर नृत्य किया करते थे और चले जाते थे किसी को क्या मालूम कि वह दोनों कैसे भक्त थे किस समय के सत्संगी थे उन्हीं दिनों अवध के नवाब शुजाउद्दौला के छोटे भाई अपनी फौज और लश्कर को साथ लेकर रामनगर राज्य में शिकार खेलने आए रामनगर के राजा सूरत सिंह ने परंपरा के अनुसार अगुवाई कर भेंट प्रदान की फिर उसके बाद राजा को साथ लेकर शिकार करने लगा  और नदी के किनारे शिकार खेलते खेलते सरदहा के जंगल में पहुंच गया जहां उसने उन्हीं दोनों मोरों को देखकर बंदूक चलाई जिसके छर्रे मोरो को लगे किंतु वह दोनों गिरते पड़ते उड़े और समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास आ गए और अपनी चोंच उठाकर अपने पैरों मे लगे छर्रों के घाव दिखाए तब समर्थ साई  जगजीवन दास जी ने एक सेवक को आदेश दिया कि नवाब से कह दो कि जंगल के जानवर बहुत दुखी हैं और अपना लश्कर यहां से ले जाए अन्यथा जैसा जानवरों को दुख मिल रहा है वैसा ही उसको भी मिलेगा क्योंकि जो जैसा करता है उसे वैसा ही फल मिलता है तब नवाब समर्थ साई जगजीवन  स्वामी जी का यह संदेश सुनकर क्रोधित हो गया और बोला कि हमें हुकुम देने वाला वह कौन है यह कहते ही उसका बदन यकायक कांपने लगा और ऐसा डर गया जैसे उसे किसी ने घेर लिया हो तब उसने विचार किया कि मैंने जो एक संत की अवहेलना की है यह उसी का परिणाम है और यह सब उसी कारण से हो रहा है तब वह वहां से वापस खेमे में लौट गया और वहां रामनगर के राजा सूरत सिंह से कहा कि तुम उन फकीर के पास जाओ और नजर नियाज (भेंट  उपहार )  देकर प्रसन्न  करो पता नहीं क्यों मेरा दिल आज बहुत ही ज्यादा घबरा रहा है तब राजा सूरत सिंह ने कहा कि फकीरों के पास खाली हाथ जाना रियासत की प्रतिष्ठा के खिलाफ है तब नवाब ने बारह  गांव के माफीनामा का परवाना लेकर राजा को स्वामी जी के पास भेजा राजा ने समर्थ साई जगजीवन दास जी का दर्शन किया और मेवा मिठाई रुपया भेंटकर माफीनामा का पत्र परवाना निकाला  समर्थ साई जगजीवन दास जी ने पूछा कि यह कागज कैसा है राजा सूरत  सिंह ने कहा महाराज आपके यहां साधु संत आया करते हैं उनके खर्च के वास्ते नवाब साहब ने यह  माफीनामा भेट किया है इस पर समर्थ साई जगजीवन दास जी ने कहा यहां जो आता है उसका खाना पीना भगवान देते हैं इस माफीनामा के परवाने को वापस ले जाओ यह हमारे काम का नहीं है राजा सूरत  सिंह ने लौटकर नवाब को बताया कि वह महत्यागी सिद्ध महात्मा है उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया तब नवाब साहब ने केवल एक  गांव कोटवा का माफीनामा लिखकर दिया जिसे लेकर सूरत सिंह पुनःआये और प्रसाद पूजा कर वह कागज स्वामी जी को दिखाया तब स्वामी समर्थ साहेब  जगजीवन दास ने पूछा यह गांव तीनों लोकों में ही है या उससे अलग है और किस राज्य में है तब राजा सूरत  सिंह ने जवाब दिया कि तीनों लोक की मुझे खबर नहीं कि कहां तक है किंतु यह जानता हूं कि यह गांव अयोध्या जी के राज्य में है जहां रामचंद्र जी का अवतार हुआ है यह सुनकर स्वामी समर्थ साईं जगजीवन दास जी बहुत प्रसन्न हुए और बोलेअगर राजा रामचंद्र जी के राज्य में है तो हम किसी और से क्यों ले जब लेना होगा उनसे मांग लेंगे यह कहकर कागज वापस कर दिया और पूजा में आई हुई  सारी  अशर्फियोंऔर रुपयों को सब का सब गरीबों मे  बांट दिया यह देख सूरत सिंह को आश्चर्य हुआ कि इतना धन आज ही क्यों बांट दिया इसके उपरांत स्वामी जी ने सूरत  सिंह से कहा कि आंखें बंद करो और उन्होंने जब आंखें बंद की तब हर जगह अशर्फियों का ढेर लगा देखा उसके बाद समर्थ साई जगजीवन  स्वामी जी ने कहा कि मैंने जो कहा था कि लश्कर जंगल से जाना चाहिए क्योंकि इससे जानवरों को दुख पहुंचता है उसे पूरा करो इस पर सूरत  सिंह ने कहा कि मैं अभी जाकर इसका प्रबंध करता हूं यह कहकर सूरत सिंह नवाब के पास वापस लौट आया और बताया कि वह महात्मा किसी चीज की परवाह नहीं करते और मात्र इतना ही कहा कि आपका लश्कर यहां से कूचकर जाए उस समय नवाब के सलाहकार जो वहां बैठे थे उन्होंने कहा कि क्या फकीर कहीं का हाकिम है इस तरह उसके आदेश से लश्कर नहीं जाएगा इस पर नवाब ने कहा कि हम यहां शिकार खेल कर ही कूच  करेंगे उसे बकने दो तभी अचानक बड़े जोर की आंधी आई और दिन में ही रात जैसा अंधेरा छा गया और एक मस्त हाथी जंजीर तोड़ कर उत्पात मचाने लगा और बहुत से लोगों को कुचल कर पटक कर रौंद डाला जिससे चारों और भगदड़ मच गई और लोग त्राहि-त्राहि करने लगे जब यह सब नवाब ने देखा तो नवाब ने प्रतिज्ञा की कि इस स्थान पर कभी शिकार खेलने ना आऊंगा और उसी समय लश्कर ले कर कूचकर दिया तब उसकी जान बची। 
   

कीर्ति गाथाएं
कीर्ति गाथा 67

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