एक बार नित्य की भांति ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर समर्थ साई जगजीवन दास जी ध्यान अवस्था में बैठे थे और संतगण नारदीय भजन गा रहे थे उसी समय पांच हजार नागा साधुओं का दल विभूति लगाए रुद्राक्ष की माला पहने तलवार तीर बंदूक हाथी घोड़े ऊंट साथ लिए सरदहा गांव के निकट बाग में तालाब के पास आकर डेरा डाला उन नागा साधुओं के महंत अपने शिष्यों के साथ स्वामी जी के पास आए और साईं समर्थ जगजीवन दास जी ने उन्हें बिठाया तब महंत जी बोले कि तुम यहां के महंत हो तो हमारे भोजन का बंदोबस्त करो यह सुनकर समर्थसाई जगजीवन दास जी के पास बैठे हुए लोगों को बड़ा विश्मय हुआ कि किस प्रकार से इतने लोगों के भोजन का प्रबंध होगा समर्थ साईं जगजीवन दास जी ना तो जमींदार हैं और ना ही किसी के नौकर और ना ही रोजगार और लेन-देन का कार्य करते हैं और जो कुछ भी पूजा में आता है वह महाभाँट और अभ्यागतों एवं आने वाले भक्त लोग खाते पीते हैं ,गुजर-बसर के लिए खेती होती है उससे भी इतना प्राप्त नहीं होता कि इन लोगों को भोजन उपलब्ध कराकर इज्जत बचाई जा सके यह नागा साधु लोग जहां कहीं भी धार्मिक स्थान या व्यक्ति को पाते हैं उससे जैसे ही हो भोजन अवश्य लेते हैं परंतु स्वामी जी निर्विकार बैठे रहे और कहा अच्छा अभी प्रबंध करता हूं समर्थ साई जगजीवन दास जी ने अपने मकान के भंडार गृह से खाद्यान्न का प्रबंध कर दिया और लकड़ी भूसा इत्यादि को भी उपलब्ध करा दिया जिसे देख कर उन नागा महंत जी ने कहा कि इतने से क्या होगा यह तो आधे लोगों के लिए भी पर्याप्त नहीं है और अनाज का प्रबंध करो इस पर समर्थ साई जगजीवन दास जी ने कहा कि यह सामग्री भगवान के भंडार से आई है जहां मैंने जमा नहीं किया था वह भगवान जो तीनों लोकों एवं चौदह भुवनों के मालिक हैं सबको जीवन और आहार देते हैं वह आपको भूखा नहीं रखेंगे वे राई का पहाड़ कर सकते हैं इसमें संदेह ना करिए और रसोई करवा दीजिए मैं यही मौजूद हूं यदि तैयार रसोई के प्रसाद में कोई साधु प्रसाद पाने से रह जाएगा तो उसका उत्तर दायित्व मेरा होगा, महंत जी ने उसी समय भोजन तैयार करने की आज्ञा दी रसोई तैयार होने पर सभी साधु भोजन पानेलगे और बैठकर खूब भोजन किया किंतु रसोई में कुछ भी कम ना पड़ा ,जिससे महंत जी को समर्थ साई जगजीवन दास जी की महिमा का पता चल गया, रसोई में बचे हुए भोजन को स्वामी जी ने गरीब लोगों में बांटने की आज्ञा दी तब महंत जी ने समर्थ साई जगजीवन दास जी से क्षमा याचना कर आगे प्रस्थान करने की अनुमति मांगी और विदा होकर चले गए।
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Saturday, March 30, 2019
कीर्ति गाथा 42
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