एक बार सात व्यक्ति जो स्वामी जी के भक्त थे कुछ अशर्फियों को लेकर नगर के साहूकारों के हाथ बेचने आए उन अशर्फियों को बाजार में कई साहूकारों को दिखाया परंतु किसी जगह भाव तय ना हो सका इसी दौड़ भाग के दौरान उन अशर्फियों की थैली कहीं गिर गई और यह जानकर वे लोग बदहवास होकर ढूंढने लगे किंतु वह थैली कहीं ना मिली तब वह वहां से समर्थ साईं जगजीवन दास जी के पास आए और उनके चरणों में प्रणाम कर अशर्फियों के खो जाने का हाल कह कर दुखी हो गए इस पर समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि वही बाजार में ढूंढो तब वह लोग खुश होकर बाजार लौट आए और ढूंढने लगे किंतु कहीं पता ना चला वह पुनः समर्थ जगजीवन दास जी के पास आए और कहा कि हमको कहीं भी नहीं मिली लगता है कोई चोर उठा ले गया तब समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि तुम्हारी बस्तु कोई नहीं ले जा सकता फिर जाकर ढूंढो तब वे पुनः बाजार लौटकर ढूंढने लगे किंतु अशर्फियों की थैली ना मिली तब वे लोग अपने मन में विचार करने लगे कि शायद समर्थ जगजीवन दास जी ने हम को सांत्वना देने के लिए पुनः ढूंढने को कहा है और जब ढूंढने पर भी नहीं पाएंगे तो हम लोग सब्र कर लेंगे परंतु यह भी सत्य है कि समर्थ साईं जगजीवन दास जी जो कहते हैं वह अवश्य होता है वह सब इसी सोच विचार में थे की अचानक बहुत तेज आंधी आई और जोरो की हवा चलने लगी और पेड़ गिरने लगे बाजार के छप्पर उड़ गए यह लोग भी एक जगह बैठ गए थोड़ी देर बाद जब आंधी रुकी और लोग चलने फिरने लगे तब वह लोग भी उठ कर चलने लगे उन्होंने आगे रास्ते में देखा कि उनकी थैली पड़ी है उसे उठाकर जब देखा था तो अंदर सारी अशरफिया पूरी मिली जिससे वह लोग बहुत प्रसन्न हुए और स्वामी जी को आकर सारा वृत्तांत कह सुनाया इस पर समर्थ साईं जगजीवन दास जी ने कहा कि चलो अच्छा हुआ अब घर लौट जाओ तब वह सब विदा होकर चले आए।
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Saturday, March 30, 2019
कीर्ति गाथा 41
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