दिल्ली शहर बहुत समय से बादशाहों की राजधानी थी जिसमें हर धर्म के कामिल सिद्ध फकीर व संत रहते थे एक बार वहां के बादशाह ने हुक्म दिया कि यह सब संत फकीर बेकार हैं और मुफ्त की रोटी तोड़ते हैं इन्हें या तो मार देना चाहिए या परेशान कर शहर से बाहर निकाल देना चाहिए वहीं पर एक फकीर बादी शाह थे जिनके एक हाथ में तस्वीह यानी माला और दूसरे हाथ में संसा सिर पर टोपी और बदन पर कुर्ता रहता था वह पांचों वक्त के नमाजी थे और रोजा रखते दीन ईमान की बातें करते थे किसी से कुछ नहीं मांगते थे किंतु उन्हें भी दिल्ली से बाहर निकाल दिया गया वह वहां से चलकर समर्थ साई जगजीवन दास जी के स्थान पर जय जयकार करते हुए शरदहा गांव पहुंचे समर्थ साई जगजीवन दास जी ने उन्हें आदर से बिठा कर उनका हाल चाल पूछा तब बादीशाह ने कहा कि आप सब जानते हैं मुझसे क्या पूछना जिस शहर में बचाने वाले नहीं रहने पाते वह शहर कैसे बचेगा हम सब जाकर कहां रहेंगे तब समर्थ साई जगजीवन दास जी ने यह शब्द कहे "" अब जाग प्रभु धूमधाम"" इसके बाद बादी शाह से कहा जब तक तुम ईरान जाकर दिल्ली वापस नहीं लौट आते हो उतने समय तक दिल्ली का सुरक्षित रहना प्रतीत होता है तब बादी शाह ने कहा मुझे जो जानना था मैंने जान लिया प्रभु और अब मैं ईरान जाता हूं बादीशाह ईरान पहुंचकर नादिर शाह की फौज के साथ दिल्ली लौट आए और दिल्ली में जहां उनका तत्कालीन मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला द्वारा अपमान हुआ था वहां नादिरशाह की फौजों ने लूटपाट और कत्लेआम किया इसके बाद नादिरशाह जब दिल्ली से लौटकर ईरान पहुंचा तब वहां मलामत शाह कामिल फकीर से मुलाकात की और मलामत शाह दिल्ली के कत्लेआम का हाल जानकर बहुत दुखी हुए और कहा कि क्या अब दिल्ली राज्य में कोई सिद्ध महात्मा साहिबे कमाल या कामिल फकीर नहीं रह गए ऐसा मालूम होता है कि जगजीवन दास जी सिद्ध महात्मा प्रसिद्ध थे वह भी अब साहिबे कमाल (परम सिद्ध )महात्मा नहीं रह गए और यदि वह परम सिद्ध होते तो उस मुल्क में इतना जान माल का नुकसान ना होता मलामत शाह ने जब यह कहा तो उनके अंदर की जितनी भी सिद्धियां थी सब जाती रही और वह एक साधारण आदमी की तरह रह गए इस पर मलामत शाह को बहुत दुख हुआ और अपनी सिद्धियों को पुनः प्राप्त करने के लिए बादी शाह के पास मदद लेने पहुंचे तब बादी शाह ने मलामत शाह को बताया कि मैंने स्वामी जगजीवन दास जी से ऐसा होने का वचन लिया था क्योंकि दिल्ली में संतों और फकीरों का बहुत अपमान हुआ था और तुमने उन्हीं की सिद्धता पर शंका की इसलिए तुम्हारी सारी सिद्धियां जाती रही इसलिए तुम उन्ही के पास जाओ और उन्हीं की कृपा से अपनी सिद्धियां पुनः प्राप्त करो इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है तब मलामत शाह ईरान से चलकर शरदहा में समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास आए और अपना अपराध स्वीकार करके उनसे क्षमा प्रार्थना की समर्थ साई जगजीवन दास जी ने मलामत शाह को क्षमा कर दिया और उनकी सिद्धियों पुनः उन्हें वापस लौटा दी परंतु मलामत शाह लौट कर ना तो ईरान गए और ना ही दिल्ली गए वरन सरदहा के निकट ही वर्तमान में बदोसराय जंगल में अपना स्थान बना कर शेष जीवन यही व्यतीत किया
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Saturday, March 30, 2019
कीर्ति गाथा 40
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