एक बार मथुरा दास बैरागी महंत अपने दल बल के साथ सरदहा गांव में आए बैरागियों ने अपने घोड़े बैल ऊंट आदि स्थान पर बांध दिया तथा महंत जी के साथ सभी बैरागी समर्थ साई जगजीवन दास जी के स्थान पर आए उनके साथ दो बंदर भी थे जो बैरागियों के साथ रहते थे और उसी प्रकार भोजन प्रसाद पाते थे और वह महंत जी के बड़े आज्ञाकारी और अधिक प्रिय बंदर थे जब वैरागियों सहित महंत जी समर्थ साई जगजीवन दास जी के स्थान पर पहुंचे तो समर्थ साई जगजीवन दास जी ध्यान में मग्न ब्रह्मलीन बैठे थे उन्हें यह भी सुध ना रही कि कौन आया है समर्थ साई जगजीवन दास जी से उत्तर ना मिलने पर महंत जी को बहुत क्रोध आया और चिल्ला कर बोले कि बहुत ध्यान हो चुका अब हमारी ओर ध्यान करो हम आ चुके हैं इस पर भी उत्तर ना पाकर महंत जी ने कहा यदि हमारे जगाये ना जागोगे तब यह बंदर तुम्हें जगायेंगे तब जाग जाओगे और बंदरों को छोड़कर ललकारा तब दोनों बंदर स्वामी जी की तरफ मुंह फैला कर दौड़े इस पर स्वामी जी ने ""जय बजरंग ""शब्द का उच्चारण किया जिसे सुनते ही दोनों बंदरों ने पलटकर महंत मथुरा दास बैरागी के ऊपर आक्रमण कर दिया एक बंदर ने मथुरा दास जी के गाल पर थप्पड़ मारकर उनकी एक आंख निकाल ली और दूसरे बंदर ने उनका गला काट लिया उसके उपरांत यह दोनों बंदर दौड़कर पेड़ पर चढ़ गए घायल मथुरा दास जी आर्द्र भाव से समर्थ साई जगजीवन दास जी के चरणों में गिर पड़े उस समय समर्थ साई जगजीवन दास जी ने कहा मथुरादास को उठाकर इनका उपचार करो और बंदरों को वापस बुलाकर मिठाई खिलाया और बैरागियों को प्रसाद दिया तब मथुरा दास जी को विश्वास हुआ कि उनके अपराध को समर्थ साई जगजीवन दास जी ने क्षमा कर दिया कुछ दिन समर्थ साई जगजीवन दास जी के पास रहकर जब अच्छे हो गए तो अपने स्थान को वापस चले गए
|
Thursday, March 28, 2019
कीर्ति गाथा 36
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment