एक दिन समर्थ साई जगजीवन दास जी अपने मकान के दक्षिणी दरवाजे पर बैठे थे उनके चारों और संतों की समाज थी और बहुत से श्रद्धालु उनके दर्शन हेतु आ रहे थे उसी समय एक यती( साधु वेश धारी मृगछाला लिए भभूत रामाये पहुंचा उसे देखकर समर्थ साई जगजीवन दास जी ने उसे अपने पास बैठा लिया किंतु उसका इरादा दर्शन करने का नहीं था बल्कि वह वाद विवाद के लिए आया था इसलिए बैठते ही स्वामी जी की निंदा करते हुए कहने लगा वाह ऊंची दुकान फीके पकवान रंगा सियारन खेत खावा परंतु स्वामी स्वामी जी कुछ ना बोले किंतु उसने अपनी बकवास बंद ना की इस पर स्वामी जी ने कहा कि अब शांत हो जाओ क्योंकि तुम्हारी बातें सिर्फ आदमियों का दिल दुखाने वाली ही नहीं है बल्कि छत फट पड़ने का डर है क्योंकि तुम मेरी ही नहीं वरन धर्म की भी निंदा कर रहे हो जो सुनने योग्य नहीं है किंतु वह जती न माना इतने में छत की लकड़ी का एक टुकड़ा टूट कर यती के सिर पर गिरा जिससे उसकी खोपड़ी लहूलुहान हो गई किंतु वह लकड़ी का टुकड़ा उचक उचक कर उस जती को मारता रहा इस पर परेशान होकर जती समर्थ साई जगजीवन दास जी के चरणों पर गिर गया और कहा कि मेरी रक्षा कीजिए मुझे मेरे कर्मों का फल मिल गया उसी समय वह लकड़ी का टुकड़ा अलग गिर पड़ा और समर्थ साई जगजीवन दास जी ने जती का उपचार करा कर उसे विदा कर दिया।🌷
|
Thursday, March 28, 2019
कीर्ति गाथा 38
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment